3 विद्युत विभव || हिंदी नोट्स || Kumar Mittal Physics class 12 chapter 3 notes in Hindi
3 विद्युत विभव || भौतिकी हिंदी नोट्स || Kumar Mittal Physics class 12 chapter 3 notes in Hindi
आज आप इस आर्टिकल (लेख) में क्या सीखेंगे?
विद्युत विभव, विद्युत विभव का मात्रक एवं विमा, विद्युत विभव का भौतिक महत्व, पृथ्वी विभव के निर्देश के रूप में, विभवांतर, विभवांतर का मात्रक एवं विमा, विद्युत क्षेत्र में दो बिन्दुओं के बीच एक आवेश को ले जाने में किया गया कार्य तथा प्राप्त वेग, इलेक्ट्रॉन वोल्ट, एकल बिन्दु आवेश के कारण किसी बिन्दु पर विद्युत विभव, बिन्दु आवेशों के समूह के कारण विद्युत विभव स्थिर विद्युत स्थितिज ऊर्जा, समविभव पृष्ठ तथा इसकी विशेषताएं, विभव प्रवणता : विभव प्रवणता तथा विद्युत क्षेत्र की तीव्रता में सम्बन्ध, विद्युत क्षेत्र के रेखीय समाकल के रूप में विद्युत विभव, विद्युत द्विध्रुव के कारण विद्युत विभव, एकसमान बाह्य विद्युत क्षेत्र में विद्युत द्विध्रुव को घूमाने में किया गया कार्य, विद्युत क्षेत्र में विद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा।
विद्युत विभव —
विभव वह भौतिक राशि जो विद्युत (धन ) आवेश के प्रवाह की दिशा को निर्धारित करती है। यदि भिन्न भिन्न विद्युत विभवों वाली दो चालक वस्तुओं को परस्पर संपर्क में लाया जाए, तो आवेश तब तक प्रवाहित होता है जब तक कि दोनों वस्तुओं के विभव समान नहीं हो जाते।
“एकांक धन-परिक्षण आवेश को अनन्त से विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु तक लाने में किया गया कार्य, उस बिन्दु पर विद्युत विभव कहलाता है। इसे V से प्रदर्शित करते हैं। विद्युत विभव एक अदिश राशि है।”
यदि धन-परिक्षण आवेश $+q_0$ को अनन्त से विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु तक लाने में $W$ कार्य करना पड़ता है, तो उस बिन्दु पर विद्युत विभव —
$$ V=W/q_0 $$विद्युत विभव का मात्रक —
विद्युत विभव का मात्रक जूल/ कूलाम या वोल्ट होता है।
$$ 1 V=1 JC^{-1} $$
वोल्ट की परिभाषा —
यदि एकांक धन-परिक्षण आवेश को अनन्त से विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु तक लाने में 1 जूल कार्य करना पड़े, तो उस बिन्दु का विभव 1 वोल्ट कहलाता है।
विद्युत विभव की विमा —
$$= [MLT^{-2}]/[AT] $$
$$=[ML^2 T^{-3}A^{-1}]$$
विद्युत विभव का भौतिक महत्व —
यदि भिन्न भिन्न विद्युत विभवों वाली दो चालक वस्तुओं को परस्पर संपर्क में लाया जाए, तो आवेश तब तक प्रवाहित होता है, जब तक कि दोनों वस्तुओं के विभव समान नहीं हो जाते।
अतः विद्युत विभव का स्थिर वैद्धुतिकी में वही महत्व है जो यांत्रिकी में द्रव प्रवाह के लिए द्रव तल की ऊंचाई का, तथा ऊष्मा प्रवाह के लिए ताप का होता है।
विभवान्तर —
बाह्य कर्ता द्वारा एकांक धन-परीक्षण आवेश को विद्युत क्षेत्र में एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया गया कार्य, इन बिंदुओं के बीच विभवान्तर कहलाता है।
यदि धन परीक्षण आवेश को बिंदु B से A तक ले जाने में किया गया कार्य $W$ हो तो बिंदुओं A व B के बीच विद्युत विभवान्तर
$$ V_A - V_B=W/q_0 $$विभवान्तर का मात्रक —
विभवान्तर का मात्रक जूल/कूलाम या वोल्ट होता है।
वोल्ट की अन्य परिभाषा —
“यदि विद्युत क्षेत्र में किसी परिक्षण-आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में 1 जूल प्रति कूलाम कार्य किया जाए, तो उन बिंदुओं के बीच विभवान्तर को एक वोल्ट कहते हैं।”
विद्युत क्षेत्र में दो बिंदुओं के बीच एक आवेश को ले जाने में किया गया कार्य —
विद्युत क्षेत्र में दो बिंदुओं के बीच विभवान्तर —$$ W= {q_0}×(V_A - V_B ) $$
यदि $q$ आवेश को विद्युत क्षेत्र में बिन्दु B से A तक लाने में जिनके बीच विभवान्तर $ΔV$, किया गया कार्य है —
$$ W= q×ΔV $$
विद्युत क्षेत्र में कण को गति करने के लिए स्वतंत्र होने पर —
$$ K= q×ΔV $$
$$ 1/2 mv^2= q×ΔV $$
$$ v^2={2 qΔV}/m $$
$$ v=√({{2qΔV}/m}) $$
इलेक्ट्रॉन-वोल्ट की परिभाषा —
“यदि दो बिंदुओं के बीच विभवान्तर 1 वोल्ट हो, तो किसी इलेक्ट्रॉन को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किया गया कार्य 1 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट होता है।”
अथवा“1 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट वह गतिज ऊर्जा है जो कोई इलेक्ट्रॉन 1 वोल्ट विभवान्तर द्वारा त्वरित होने पर अर्जित करता है।”
$$ 1 eV=1.6×10^{-19} J $$
$$ 1 KeV=10^3 eV=1.6×10^{-16} J $$
$$ 1 MeV=10^6 eV=1.6×10^{-13} J $$
$$ 1 BeV=10^9 eV=1.6×10^{-10} J $$
किसी (एकल) बिन्दु आवेश के कारण किसी बिन्दु पर विद्युत विभव —
माना बिन्दु O पर $+q$ कूलाम का एक आवेश $K$ परावैद्धुतांक वाले माध्यम में रखा है। $+q$ आवेश के कारण उत्पन्न विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु A पर विद्युत विभव ज्ञात करना है। बिन्दु O से A के बीच की दूरी $r$ है। बिन्दु A की सीध में एक बिन्दु B है। बिन्दु B पर धन परीक्षण आवेश $q_0$ रखा है। बिन्दु O से B तक की दूरी $x$ है।
कूलाम के नियम के अनुसार $+q$ के कारण $q_0 $ पर लगने वाला विद्युत बल —
माना बिन्दु B से $+q$ की ओर अत्यंत सूक्ष्म दूरी $dx$ पर एक अन्य बिन्दु C है। $q_0$ को बल की दिशा से विपरीत C तक लाने में दूरी $-dx$ होगी।
$q_0$ आवेश को बल $F$ के विरूद्ध B से C तक लाने में किया गया कार्य = विद्युत बल × दूरी
$ ∆W= 1/{4πϵ_0 K} {qq_0}/x^2 (-dx) $ जूल
$q_0$ आवेश को B से A तक लाने में किया गया कार्य —
$$ W=1/{4πϵ_0 K} qq_0 ∮_∞^r (-dx)/x^2 $$
$$ W=1/{4πϵ_0 K} qq_0 [1/x] $$
$$ W=1/{4πϵ_0 K} qq_0 [1/r-1/∞] $$
$$ W=1/{4πϵ_0 K} qq_0 [1/r- 0] $$
$$ W=1/{4πϵ_0 K} {qq_0}/r $$
अतः $+q$$ आवेश के कारण बिन्दु A पर विद्युत विभव —
$$ V =1/{4πϵ_0} {qq_0}/{rq_0} $$
$V =1/{4πϵ_0} q/r $ वोल्ट
इसी प्रकार $-q$ आवेश के कारण बिन्दु A पर विद्युत विभव —
बिन्दु आवेशों के समूह के कारण विद्युत विभव —
या $ V =K q/r $ वोल्ट
यदि कोई बिन्दु $+q1, +q2, -q3 $ तथा $-q4$ कूलाम के आवेशों से क्रमशः $r1, r2, r3$ तथा $r4$ दूरी पर हो तो उस बिन्दु पर कुल विद्युत विभव —
विद्युत द्विध्रुव तथा विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण:
विद्युत द्विध्रुव —
“अल्प दूरी पर स्थित दो समान परिमाण के विपरीत प्रकृति (विजातीय) आवेशों के निकाय को विद्युत द्विध्रुव कहते हैं।”
विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण —
“विद्युत द्विध्रुव के किसी एक आवेश और द्विध्रुव की लंबाई के गुणनफल को विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण कहते हैं। इसे $p$ से प्रदर्शित करते हैं।”
यदि $+q$ और $-q$ आवेशों से निर्मित द्विध्रुव के आवेशों की बीच की दूरी $2l$ हो, तो विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण —
$$ p ⃗= 2 q l p ̂ $$
विद्युत द्विध्रुव के कारण विद्युत विभव :
विद्युत द्विध्रुव की अक्षीय स्थिति में किसी बिन्दु पर विद्युत विभव —
माना एक विद्युत द्विध्रुव $AB$ पराविद्युतांक $K$ वाले माध्यम में रखा है। माना विद्युत द्विध्रुव $AB$ दो बिन्दु आवेशों $+q$ और $-q$ से बना है जिनके बीच की दूरी $2l$ है। विद्युत द्विध्रुव के मध्य बिन्दु O से $r$ दूरी पर इसकी अक्षीय स्थिति में एक बिन्दु $P$ पर विद्युत विभव ज्ञात करना है।
$- q$ से P की दूरी $= (r + l)$
$$ V_1=1/{4πϵ_0 K} q/{(r-l)} , (1)$$
$-q$ के कारण बिन्दु P पर विद्युत विभव —
$$V_2=1/{4πϵ_0 K} {-q}/{(r+l)} $$ $$ V_2= -1/(4πϵ_0 K) q/{(r+l)} , (2)$$
अतः बिन्दु P पर परिणामी विभव —
$$ V = 1/{4πϵ_0 K} q/{(r-l)} + {-1}/{4πϵ_0 K} q/{(r+l) )} $$
$$ V = q/{4πϵ_0 K} [1/{(r-l)} - 1/{(r+l)}] $$
$$ V = q/{4πϵ_0 K} [{r+l-(r-l)}/{(r-l)(r+l)}] $$
$$ V = q/{4πϵ_0 K} [{r+l-r+l}/{r^2- l^2}] $$
$$ V = q/{4πϵ_0 K} {2l}/{r^2-l^2} $$
$$ V = 1/(4πϵ_0 K) {2ql}/{r^2-l^2} = 1/{4πϵ_0 K} p/{r^2-l^2} $$
निर्वात अथवा वायु के लिए $K = 1$
विद्युत द्विध्रुव की निरक्षीय स्थिति में किसी बिन्दु पर विद्युत विभव —
माना एक विद्युत द्विध्रुव $AB$ पराविद्युतांक $K$ वाले माध्यम में रखा है। माना विद्युत द्विध्रुव $AB$ दो बिन्दु आवेशों $+q$ और $-q$ से बना है जिनके बीच की दूरी $2l$ है। विद्युत द्विध्रुव के मध्य बिन्दु O से इसके लम्बार्द्धक रेखा पर $r$ मीटर की दूरी पर स्थित एक बिन्दु $P$ पर विद्युत विभव ज्ञात करना है।
$+q$ के कारण बिन्दु $P$ पर विद्युत विभव —$$V_1=1/{4πϵ_0 K} q/{BP} , (1)$$ $-q$ के कारण बिन्दु $P$ पर विद्युत विभव —
$$V_2=1/{4πϵ_0 K} {-q}/{AP} $$
$$V_2= - {1}/{4πϵ_0 K} q/{AP} , (2)$$
अतः बिन्दु P पर परिणामी विभव —
$$V= V_1+ V_2 $$
$$ V =1/{4πϵ_0 K} q/{BP} - 1/{4πϵ_0 K} q/{AP} $$
परन्तु $BP = AP$ अतः
$$ V =1/{4πϵ_0 K} q/{AP} - 1/{4πϵ_0 K} q/{AP} $$
$$ V =0 $$
अतः विद्युत द्विध्रुव की निरक्षीय स्थिति में किसी बिन्दु पर विद्युत विभव शून्य होता है।
समविभव पृष्ठ —
किसी विद्युत क्षेत्र में खींचा गया वह पृष्ठ जिस पर स्थित सभी बिन्दुओं पर विद्युत विभव समान (बराबर) हो, समविभव पृष्ठ कहलाता है।
अतः समविभव पृष्ठ पर किन्हीं दो बिंदुओं के बीच विद्युत विभवान्तर शून्य होता है। समविभव पृष्ठ के प्रत्येक बिंदु पर बल रेखाएं पृष्ठ के लम्बवत होती हैं।
समविभव पृष्ठ के गुण —
- चूंकि समविभव पृष्ठ में सभी बिंदुओं पर विभव समान होता है। अतः किसी आवेश को समविभव पृष्ठ पर किसी एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया गया कार्य शून्य होता है।
- विद्युत क्षेत्र की दिशा सदैव समविभव पृष्ठ के अभिलंबवत होती है।
- दो समविभव पृष्ठ कभी भी एक दूसरे को नहीं काटते हैं।
- प्रबल विद्युत क्षेत्र में समविभव पृष्ठ परस्पर पास पास तथा दुर्बल विद्युत क्षेत्र में दूर-दूर होते हैं।
विभव-प्रवणता —
“विद्युत क्षेत्र की दिशा में दूरी परिवर्तन के साथ विभव परिवर्तन की दर को विभव-प्रवणता कहते हैं। विद्युत क्षेत्र की दिशा के अनुदिश विद्युत विभव का मान घटता जाता है।”
$$={(V-ΔV)- V}/{(x+Δx)-x}={-ΔV}/{Δx} $$
विभव-प्रवणता $=-({ΔV}/{Δx})$
विभव-प्रवणता का मात्रक —
विभव-प्रवणता का मात्रक वोल्ट/मीटर होता है।
विभव-प्रवणता की विमा —
$$=[ML^2 T^{-3} A^{-1}]/[L] $$
$$=[MLT^{-3} A^{-1}] $$
विभव-प्रवणता : विभव-प्रवणता तथा विद्युत क्षेत्र की तीव्रता में सम्बन्ध —
यदि एक धन परीक्षण आवेश $q_0$ को विद्युत क्षेत्र $E ⃗ $ में लाया जाता है तो $q_0$ पर एक बल $F$, क्षेत्र $E ⃗ $ की दिशा में कार्य करता है तब —
आवेश $q_0$ को B से A तक लाने में बाह्य कर्त्ता को बल $F$ के विरुद्ध कार्य करना पड़ेगा। तब —
$$ΔW= F×(-x)$$
$ {ΔW}/{q_0} = E×(-x) $ ,समी (ii)
परन्तु विभवान्तर की परिभाषा से —
$ {ΔW}/q_0 =ΔV $ ,समी (iii)
समी (ii) व (iii) से
$$ E={ΔV}/{-Δx} $$
$$ E=-({ΔV}/{Δx})$$
अतः विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर किसी दी हुई दिशा में विद्युत क्षेत्र की तीव्रता, उस दिशा में ऋणात्मक विभव-प्रवणता के बराबर होती है।
विपरीत प्रकृति के आवेश से आवेशित दो समांतर प्लेटों के बीच विभव प्रवणता —
माना धातु की दो प्लेटें 1 तथा 2 हैं। प्लेट 1 धनावेशित तथा प्लेट 2 ऋणावेशित है। माना प्लेटों के बीच की दूरी d है। प्लेटें एक दूसरे समांतर स्थित हैं। अतः प्लेटों के बीच विद्युत क्षेत्र एकसमान होगा। जिसकी दिशा प्लेट 1 से प्लेट 2 की ओर होगी। यदि प्लेट 1 का विभव $V_1$ तथा प्लेट 2 का विभव $V_2$ हो तो —
अतः प्लेटों के बीच विद्युत क्षेत्र की तीव्रता —
$ E={(V_1- V_2 )}/d $ वोल्ट/मीटर
अतः प्लेटों के बीच विभव प्रवणता —
$E= {V_2- V_1}/d $ वोल्ट⁄मीटर
एकसमान बाह्य विद्युत क्षेत्र में विद्युत द्विध्रुव को घुमाने में किया गया कार्य –
माना विद्युत द्विध्रुव को एकसमान बाह्य विद्युत क्षेत्र में साम्य स्थिति से $θ$ कोण घुमाया जाता है।
एकसमान बाह्य विद्युत क्षेत्र में रखे विद्युत द्विध्रुव पर लगने वाला बल युग्म का आघूर्ण —
विद्युत द्विध्रुव को $dθ$ कोण तक घुमाने में द्विध्रुव पर किया गया कार्य —
$$ dW=τ× dθ $$
$$ dW=pEsinθ.dθ $$
विद्युत द्विध्रुव को $θ_1$ से $θ_2$ कोण तक घुमाने में द्विध्रुव पर किया गया कार्य —
$$ W= ∫_{θ_1}^{θ_2} (pEsinθ.dθ) $$
$$ W=pE ∫_{θ_1}^{θ_2} (sinθ.dθ) $$
$$ W=pE [ -cosθ]_(θ_1)^(θ_2) $$
$$ W=pE [ -cos{θ_2} + cos{θ_1} ] $$
$$ W=pE (cosθ_1 - cosθ_2) $$
$θ_1=0$ से $θ_2=θ$ घूमाने में किया गया कार्य —
$$ W=pE (cos0^0 - cosθ) $$
$$ W=pE (1- cosθ) $$
विशेष स्थितियां —
(i) यदि विद्युत द्विध्रुव को विद्युत क्षेत्र से $90^0$ कोण घूमाने में किया गया कार्य —
$$ W=pE (1- cos90^0 )$$$$ W=pE (1- 0)$$
$$ W=pE$$
(ii) यदि विद्युत द्विध्रुव को विद्युत क्षेत्र से $180^0$ कोण घूमाने में किया गया कार्य —
$$ W=pE (1- cos180^0 ) $$$$W=pE [1-(-1)] $$
$$ W=2pE $$
बाह्य विद्युत क्षेत्र में विद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा —
किसी विद्युत द्विध्रुव को अनंत से विद्युत क्षेत्र के भीतर लाने में किया गया कार्य विद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा कहलाता है।
एक विद्युत द्विध्रुव को अनंत से एकसमान विद्युत क्षेत्र की दिशा में लाया जाता है। विद्युत क्षेत्र के कारण विद्युत द्विध्रुव के $+q$ आवेश पर एक बल $F=qE$ क्षेत्र की दिशा में तथा $-q$ आवेश पर उतना ही बल $F=qE$ विपरीत दिशा में कार्य करता है। अतः विद्युत द्विध्रुव को विद्युत क्षेत्र में लाने के लिए $+q$ आवेश पर बाह्यकर्ता द्वारा कार्य किया जाएगा, जबकि $-q$ आवेश पर स्वयं विद्युत क्षेत्र कार्य करेगा।
विद्युत द्विध्रुव को विद्युत क्षेत्र के भीतर लाने में $-q$ आवेश को $+q$ आवेश के सापेक्ष $2l$ दूरी अधिक तय करनी पड़ती है। इस कारण $-q$ आवेश पर विद्युत क्षेत्र के द्वारा किया गया कार्य अधिक होगा और यह कार्य ऋणात्मक होगा।
अतः विद्युत द्विध्रुव को अनंत से विद्युत क्षेत्र के भीतर लाने में विद्युत क्षेत्र द्वारा किया गया नेट कार्य —
$$ W_0= -(q×2l)E $$
$$ W_0= -pE $$
यह कार्य ही विद्युत क्षेत्र में विद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा $(U_0)$ है।
इस स्थिति में विद्युत द्विध्रुव स्थाई संतुलन में होगा।
विद्युत द्विध्रुव को विद्युत क्षेत्र में $θ$ कोण घूमाने में किया गया कार्य —$$ W_θ= pE(1-cosθ) $$
अतः विद्युत द्विध्रुव कुल स्थितिज ऊर्जा — $$ U_θ= U_0+ U_θ $$
$$ U_θ= -pE+ pE(1-cosθ) $$
$$ U_θ= -pE+ pE- pEcosθ $$
$$ U_θ=- pEcosθ $$
दो बिंदु आवेशों के निकाय की स्थिर विद्युत स्थितिज ऊर्जा —
बाह्य विद्युत क्षेत्र में विद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा —
<>आवेशों को एक दूसरे से दूर ले जाने में अथवा एक दूसरे के समीप लाने में जो कार्य किया जाता है, वह कार्य ही उन आवेशों के निकाय में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। जिसे वैद्युत स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।
अतः“किन्ही दो आवेशों को अनन्त से परस्पर समीप लाकर किसी निकाय की रचना करने में जो कार्य करना पड़ता है, वह निकाय की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा कहलाती हैं।” यह एक अदिश राशि है।
माना कोई निकाय $AB$, दो आवेशों $+q_1$ तथा $+q_2$ से मिलकर बना है। जो निर्वात में एक दूसरे से $r$ मीटर की दूरी पर रखे हैं।
माना आवेश $+q_2$ बिन्दु B पर न होकर अनन्त पर है। $+q_1$ आवेश के कारण बिन्दु B पर विद्युत विभव —
$$ V=1/{4πϵ_0} q_1/r $$
विद्युत विभव की परिभाषा से, आवेश $+q_2$ को अनन्त से बिन्दु B तक लाने में किया गया कार्य —
$$ W= q_2 V $$
$$ W= q_2 {1/{4πϵ_0} q_1/r} $$
$$ W= 1/{4πϵ_0} {q_1 q_2}/r $$
चूंकि यही कार्य विद्युत स्थितिज ऊर्जा के रुप में संचित रहता है।
$U= 1/{4πϵ_0} {q_1 q_2}/r $ जूल
~~ End ~~
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