5 विद्युत चालन || हिंदी नोट्स || Kumar Mittal Physics class 12 chapter 5 notes in Hindi
5 विद्युत चालन || हिंदी नोट्स || Kumar Mittal Physics class 12 chapter 5 notes in Hindi
5 विद्युत चालन || हिंदी नोट्स || Kumar Mittal Physics class 12 chapter 5 notes in Hindi
आप आज इस आर्टिकल (लेख) में क्या सीखेंगे?
विद्युत धारा, धात्विक चालक में विद्युत आवेशों का प्रभाव, मुक्त इलेक्ट्रॉनों का माध्य मुक्त पथ, श्रांतिकाल तथा अपवाह वेग अथवा अनुगमन वेग, मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अपवाह (अथवा अनुगमन) वेग तथा विद्युत धारा में सम्बन्ध, धारा घनत्व, मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अपवाह (अथवा अनुगमन) वेग तथा धारा घनत्व में सम्बन्ध, गतिशीलता, विद्युत प्रतिरोध (विद्युत प्रतिरोध का मात्रक एवं विमा) तथा विद्युत चालकता(विद्युत चालकता का मात्रक एवं विमा), ओम का नियम, ओम के नियम के अपवाद रैखिक अभिलक्षण (रैखिक अभिलक्षण, गत्यात्मक प्रतिरोध) , विशिष्ट प्रतिरोध अथवा प्रतिरोधकता (मात्रक एवं विमा), विशिष्ट चालकता (मात्रक एवं विमा), विशिष्ट चालकता एवं धारा घनत्व में सम्बन्ध, प्रतिरोध की ताप पर निर्भरता, अतिचालकता (संक्रमण ताप), विद्युत ऊर्जा तथा शक्ति में अंतर (परिभाषाएं, जुल का नियम), किलोवॉट घंटा की परिभाषा।
5 विद्धुत चालनविद्युत धारा —
“किसी चालक में विद्युत आवेश के एक स्थान से दूसरे स्थान को प्रवाहित होने को विद्युत धारा कहते हैं।”
अथवा “विद्युत आवेश की गति की अवस्था को विद्युत धारा कहते हैं।”
अथवा “किसी चालक में आवेश की गतिमान अवस्था को विद्युत धारा कहते हैं।”
अथवा “किसी चालक में आवेश प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं।”
विद्युत धारा को $I$ से प्रदर्शित करते हैं। विद्युत धारा अदिश राशि होती है। इसकी दिशा धन आवेश की चलने की दिशा में (- से + की ओर) अथवा ऋण आवेश के चलने की दिशा के विपरीत होती है।
यदि किसी परिपथ में $q$ आवेश $t$ सेकेंड समय तक प्रवाहित होता है, तो परिपथ में विद्युत धारा —
$I=q/t⇒q=it$यदि $t = 1$ हो तो $I= q
1 एम्पियर $=6.25×10^18 $ इलेक्ट्रॉन∕सेकंड
“अतः किसी परिपथ में 1 सेकेंड में जितना आवेश प्रवाहित होता है उस आवेश को ही उस परिपथ की विद्युत धारा कहते हैं।”
अतः यदि किसी परिपथ में किसी स्थान से $t$ सेकेंड में प्रवाहित $n$ इलेक्ट्रॉनों की संख्या न हो तो कुल आवेश –
$q= ne$$I={ne}/t $
or $it=ne$
विद्धुत धारा का मात्रक तथा विमा —
विद्धुत धारा का मात्रक कूलाम/सेकेंड या एम्पियर होता है। विद्धुत धारा का S.I. मात्रक एम्पियर होता है।
अर्थात — 1 एम्पियर=1 कूलाम/सेकेंडविद्धुत धारा की विमा $[A]$ होती है।
एम्पियर की परिभाषा —
“यदि किसी चालक में आवेश के प्रवाह की दर 1 कूलाम/सेकंड हो तो उसमें प्रवाहित धारा 1 एम्पियर होती है।”
विद्धुत धारा के प्रकार —
परिमाण तथा प्रवाह की दिशा के अनुसार विद्युत धारा दो प्रकार की होती है।
प्रत्यावर्ती धारा —
“वह धारा जिसका परिमाण तथा प्रवाह की दिशा समय के साथ निरन्तर बदलती रहती है तथा एक निश्चित समय अंतराल के बाद अपनी पूर्व अवस्था में आ जाती है, प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है।”
प्रत्यावर्ती धारा की दिशा पहले आधे चक्र में दूसरे आधे चक्र के विपरीत होती है। इसका आयाम नियत रहता है।
दिष्ट धारा —
“वह धारा जिसका परिमाण तथा प्रवाह की दिशा समय के साथ नहीं बदलती रहती है, प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है। इसे स्थाई धारा भी कहते हैं।”
अथवा “वह धारा जिसका परिमाण तथा प्रवाह की दिशा समय के साथ नियत रहती है, दिष्ट धारा कहलाती है।”
यदि किसी चालक में प्रवाहित आवेश की दर समय के साथ नहीं बदलती है तो चालक में प्रवाहित धारा स्थाई धारा कहलाती है।
यदि धारा के प्रवाह की दिशा नियत तथा परिमाण परिवर्ती हो तो उसे परिवर्ती दिष्ट धारा कहते हैं।
धात्विक चालक में विद्युत आवेशों का प्रवाह : धात्विक चालन का मुक्त इलेक्ट्रॉन मॉडल —
प्रत्येक पदार्थ बहुत सारे परमाणुओं से मिलकर बना होता है। परमाणुओं में एक भारी भाग होता है जिसे नाभिक कहते हैं। नाभिक के चारों ओर बहुत सारी वृत्तीय कक्षाएं होती हैं। इन कक्षाओं में इलेक्ट्रान घूमते रहते हैं। जो इलेक्ट्रॉन नाभिक के समीप की कक्षाओं में होते हैं वे धन आवेश के द्वारा प्रबल आकर्षण बल से बंधे रहते हैं। जिन्हें बद्ध इलेक्ट्रॉन कहते हैं। परन्तु जो इलेक्ट्रॉन नाभिक के दूर की कक्षाओं में होते हैं उन पर आकर्षण बल कम होता है।
जब पदार्थ को गर्म किया जाता है या रगड़ा जाता है तो अनेक इलेक्ट्रान परमाणु से अलग होकर पूरे पदार्थ में अनियमित गति करने लगते हैं। इन्हें मुक्त इलेक्ट्रान या चालक इलेक्ट्रान या चालन इलेक्ट्रान कहते हैं। धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या बहुत अधिक होती है। इसीलिए सभी धातुएं विद्युत की सुचालक होती हैं। चांदी विद्युत की सबसे अच्छा चालक है। उसके बाद क्रमशः तांबा, सोना, एल्यूमिनियम हैं। जिन पदार्थों में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या बहुत कम अथवा शून्य होती है उनमें आवेश का प्रवाह सम्भव नहीं होता है। अतः वे पदार्थ विद्युत के अचालक होते हैं।
[स्कूल क्लास नोट्स -
सभी धातुएं विद्युत की सुचालक होती हैं। धातुओं के परमाणु में इलेक्ट्रॉन होते हैं जो नाभिक से प्रबल आकर्षण बल से बंधे होते हैं। जो इलेक्ट्रॉन नाभिक से प्रबल आकर्षण बल से नहीं बंधे होते हैं। सामान्यतः कमरे के ताप पर वे पदार्थ में स्वतंत्र रूप से गति करते रहते हैं। इन इलेक्ट्रॉनों को मुक्त इलेक्ट्रॉन कहते हैं। क्योंकि इलेक्ट्रॉन पर $1.6×10^{-19}$ आवेश होता है। इतना आवेश लेकर इलेक्ट्रॉन पदार्थ में घूमते रहते हैं। अतः इन्हें आवेश-वाहक कहते हैं। जिस पदार्थ में मुक्त आवेश-वाहक जितने ज्यादा होंगे। उसकी सुचालकता उतनी ही ज्यादा होगी। जब इलेक्ट्रॉन पदार्थ के परमाणु से बाहर निकल जाता है तो परमाणु धन आवेशित हो जाता है, तो यह आयन कहलाता है। ये आयन पदार्थ में धातु जालक से बंधे रहते हैं और स्वतंत्र रूप से गति नहीं कर सकते हैं। इन्हें बद्ध आवेश कहते हैं इस प्रकार धातुओं में विद्युत चालन इलेक्ट्रॉन की प्रवाह के कारण होता है।
जिन पदार्थों में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिक होती है उन्हें सुचालक कहते हैं। जैसे- चांदी, तांबा, एल्युमिनियम, पारा, जल, मानव शरीर, कोयला आदि। जबकि जिन पदार्थों में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या बहुत कम होती है उन्हें कुचालक या विद्युत रोधी कहते हैं। जैसे- एबोनाइट, अभ्रक, गंधक, कांच, मॉम, तेल, लकड़ी, कागज आदि।
नोट :- धातुओं में चांदी तथा तांबा उत्तम सुचालक हैं]मुक्त इलेक्ट्रॉनों का माध्य मुक्त पथ, श्रांतिकाल तथा अपवाह वेग या अनुगमन वेग —
“किसी मुक्त इलेक्ट्रॉन द्वारा दो क्रमागत टक्करों के बीच चली गई माध्य दूरी को इलेक्ट्रॉन का माध्य मुक्त पथ कहते हैं तथा टक्करों के बीच के माध्य समय अंतराल को श्रांतिकाल कहते हैं।”
सामान्य ताप पर धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉन अनियमित रूप से गति करते रहते हैं। गति करते समय मुक्त इलेक्ट्रॉन बार-बार धन आयनों से टकराते हैं तथा प्रत्येक टक्कर के बाद इनकी दिशा बदलती रहती है। जब किसी धातु या पदार्थ पर विद्युत क्षेत्र आरोपित कर दिया जाता है तो पदार्थ के अनियमित गति करने वाले इलेक्ट्रॉन विद्युत क्षेत्र की विपरीत दिशा में गति करने लगते हैं। इलेक्ट्रॉन की विपरीत दिशा में गति को अपवाह वेग या अनुमान वेग कहते हैं।
धारा घनत्व —
“किसी चालक में किसी बिंदु के परितः प्रति एकांक क्षेत्रफल के अभिलंबवत गुजरने वाली विद्युत धारा उस बिंदु पर, धारा घनत्व कहलाती है।” इसे $j$ से प्रदर्शित करते हैं। धारा घनत्व एक सदिश राशि है।
यदि किसी चालक में प्रवाहित धारा $i$ चालक के अनुप्रस्थ क्षेत्रफल $A$ पर एकसमान रूप से वितरित हो तो उस क्षेत्रफल के किसी बिंदु पर धारा घनत्व —
$j={i/A}$ or धारा घनत्व=धारा/क्षेत्रफलयदि चालक का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल विद्युत धारा के लम्बवत न होकर अभिलम्ब से $θ$ कोण बनाए तो धारा घनत्व के लिए अनुप्रस्थ क्षेत्रफल का धारा के अभिलम्बवत घटक
$Acosθ$ होगा। अतः धारा घनत्व —
$i= jAcosθ$
$i=j ⃗.A ⃗ $
अपवाह अथवा अनुगमन वेग —
“यदि किसी धातु के सिरे बैटरी से जुड़े हों तो उनमें विद्युत क्षेत्र स्थापित हो जाता है। इस विद्युत क्षेत्र मुक्त इलेक्ट्रान क्षेत्र की विपरीत दिशा में गति करने (चलने) लगते हैं। इसे अपवाह वेग अथवा अनुगमन वेग कहते हैं।”
धारा घनत्व तथा अपवाह अथवा अनुगमन वेग में संबंध —
माना किसी धातु तार के सिरे बैटरी से जुड़े हैं जिसके फलस्वरूप तार में एक विद्धुत क्षेत्र $E$ स्थापित हो जाता है तथा मुक्त इलेक्ट्रॉन विद्युत क्षेत्र की विपरीत दिशा में अपवाह वेग से चलने लगते हैं।
यदि तार के किसी अनुप्रस्थ क्षेत्रफल में से $t$ सेकेंड में गुजरने वाले इलेक्ट्रॉनों द्वारा प्रवाहित आवेश $q$ हो, तो तार में विद्युत धारा की प्रबलता —
$i=q/t $ ,(1)माना तार का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल $A$ है तथा उसके प्रति एकांक आयतन में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या $= n$
माना इलेक्ट्रॉनों का अपवाह वेग $v_d$ है तब — 1 सेकेंड में तार के अनुप्रस्थ क्षेत्रफल $A$ में से गुजरने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या $= nAv_d $अतः $t$ सेकेंड में गुजरने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या $= nAv_d t$
यदि 1 इलेक्ट्रॉन पर आवेश की मात्रा $e$ है तब $t$ सेकेंड में तार के अनुप्रस्थ क्षेत्रफल में से गुजरने वाला आवेश —
$q=(nAv_d t)×e$
$q$ का यह मान समीकरण (1) में रखने पर,
$i= {(nAv_d t)×e}/t $
$i= neAv_d $
यह अनुगमन वेग तथा विद्युत धारा के बीच सम्बन्ध है।
यदि चालक में धारा घनत्व $j ̂$ हो तो सदिश रुप में
$j ̂=i/A={neAv_d}/A $
$j ̂= nev_d $
$v_d=j/{ne}$ सदिश रुप में ${v_d} ⃗=j/{ne} $
यह अनुगमन वेग तथा धारा घनत्व के बीच सम्बन्ध है।
आवेश की गतिशीलता —
किसी आवेश वाहक के अनुगमन वेग $(vd)$ तथा उस पर आरोपित विद्युत क्षेत्र $(E)$ के अनुपात को उस आवेश वाहक की गतिशीलता कहते हैं। इसे $μ$ से प्रदर्शित करते हैं।
अथवा एकांक विद्युत क्षेत्र में, इलेक्ट्रॉनों के अपवाह (अनुगमन) वेग को आवेश वाहक की गतिशीलता कहते हैं। इसे म्यू $μ$ से प्रदर्शित करते हैं।
गतिशीलता ,$μ= {v_d}/E $यदि $E=1$ तो $μ= v_d $
अतः एकांक विद्युत क्षेत्र में किसी आवेश वाहक का अनुगमन वेग ही उसकी गतिशीलता होती है।
गतिशीलता ,$μ= {v_d}/E=j/{neE} $
धातु में उपस्थित मुक्त इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग —
$v_d= {Eeτ}/m $ ,जहां $ τ=$ श्रांतिकाल
अतः मुक्त इलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता —
$μ={({Eeτ}/m)}/m $
$μ={eτ}/m $
विद्युत प्रतिरोध तथा विद्युत चालकता —
विद्युत प्रतिरोध —
“किसी चालक द्वारा चालक में प्रवाहित होने वाली धारा के प्रवाह में उत्पन्न बाधा को चालक का विद्युत प्रतिरोध कहते हैं।”
अथवा “किसी चालक को दिया गया विभवान्तर तथा उसमें प्रवाहित धारा का अनुपात सदैव एक नियतांक होता है। यह नियतांक ही चालक का विद्युत प्रतिरोध कहलाता है।”
अथवा “किसी चालक के सिरों के बीच लगाए गए विभवान्तर तथा उसमें बहने वाली विद्युत धारा के अनुपात को उस चालक का विद्युत प्रतिरोध कहते हैं।” इसे $R$ से प्रदर्शित करते हैं।
यदि किसी चालक के सिरों के बीच विभवान्तर $V$ हो तथा चालक में बहने वाली धारा $I$ हो तो चालक का विद्युत प्रतिरोध —
$R=V/I $विद्युत प्रतिरोध के मात्रक —
विद्युत प्रतिरोध का S.I. मात्रक ओम होता है। इसे $Ω$ से प्रदर्शित करते हैं।ओम=वोल्ट∕एम्पियर
ओम की परिभाषा —
“यदि किसी चालक के सिरों के बीच 1 वोल्ट का विभवान्तर हो तथा चालक में 1 एम्पियर की धारा प्रवाहित हो तो चालक का प्रतिरोध 1 ओम होता है।”1 ओम=1 वोल्ट∕एम्पियर
प्रतिरोध का बड़ा मात्रक मेगाओम तथा छोटा मात्रक माइक्रोओम होता है।
मेगाओम $=10^6 Ω $ तथा माइक्रोओम $=10^{-6}Ω$
1 मेगाओम $= 106 $ ओम
1 माइक्रोओम $= 10-6 $ ओम
विद्युत प्रतिरोध की विमा —
ओम=वोल्ट/एम्पियर=जूल⁄(एम्पियर-सेकेंड)×1/एम्पियर=(न्यूटन-मीटर)/(एम्पियर$^2$ -सेकेंड)
$={[MLT^{-2}] [L]}/{[A^2 ] [T]}$
$=[ML^2 T^{-3}A^{-2}]$
विद्युत प्रतिरोध को प्रभावित करने वाले कारक –
किसी चालक का विद्युत प्रतिरोध –$ R={ml}/{Ane^2 τ}$
जहां $l =$ चालक की लम्बाई
$A =$ चालक का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल
$m = $ इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान
$n =$ चालक में मुक्त इलेक्ट्रॉन घनत्व
$e =$ इलेक्ट्रॉन पर आवेश
$ τ =$ श्रांतिकाल
अतः किसी विद्युत चालक के प्रतिरोध को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं।
- चालक का प्रतिरोध लंबाई के अनुक्रमानुपाती होता है।
- यह चालक के अनुप्रस्थ क्षेत्रफल के अनुक्रमानुपाती होता है।
- यह चालक में मुक्त इलेक्ट्रॉन के घनत्व के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
- यह इलेक्ट्रॉन के श्रांतिकाल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
विद्युत चालकता —
“विद्युत प्रतिरोध के व्युत्क्रम को विद्युत चालकता कहते हैं।”विद्युत चालकता= 1/विद्युत प्रतिरोध$=1/R $
परन्तु ओम के नियम से, $R={V/I} $
विद्युत चालकता $σ =1/R =1/{V⁄I}=I/V $
“अतः किसी चालक में प्रवाहित धारा तथा चालक के सिरों पर लगाए गए विभवान्तर के अनुपात को विद्युत चालकता कहते हैं।”
विद्युत चालकता का मात्रक —
इसका S.I. मात्रक मो (mho) अथवा ओम –1 अथवा साइमन होता है।विद्युत चालकता की विमा —
विद्युत चालकता की विमा $[M^{-1}L^{-2}T^3 A^2 ]$ होती है।ओम का नियम —
किसी चालक के सिरों पर लगाये गए विद्युत विभवान्तर तथा उसमें प्रवाहित विद्युत धारा के सम्बंध में एक नियम प्रस्तुत किया जिसे ओम का नियम कहते हैं।
“किसी चालक के सिरों पर लगाए गए विद्युत विभवांतर तथा उसमें बहने वाली विद्युत धारा का अनुपात नियत रहता है। इसे ही ओम का नियम कहते हैं।”
यदि किसी चालक के सिरों पर लगाया गया विभवांतर $V$ तथा उसमें बहने वाली धारा $I$ हो तो ओम के नियम के अनुसार –
$ V/I = R$जहां $R$ एक नियतांक है जिसे चालक का विद्युत प्रतिरोध कहते हैं।
इस प्रकार जब तक किसी चालक का ताप या अन्य भौतिक अवस्थाएं नहीं बदलती हैं, तब तक चालक का प्रतिरोध नियत रहता है। चाहे चालक के सिरों के बीच कितना भी विभवांतर क्यों ना लगाया जाए।
Note:– ओमीय परिपथों में यदि $V$ और $I$ के बीच खींचा गया ग्राफ सदैव सरल रेखा होती है।ओमीय परिपथ -
“वे परिपथ जिनमें ओम के नियम का पालन होता है, ओमीय परिपथ कहलाते हैं। इनका प्रतिरोध नियत रहता है और $V$ एवं $I$ के बीच खींचा गया ग्राफ, एक सरल रेखा प्राप्त होती है।
ओमीय परिपथ के प्रतिरोध को रैखिक प्रतिरोध और खींचे गए ग्राफ को रैखिक अभिलक्षण कहते हैं।
अनओमीय परिपथ -
“वे परिपथ जिनमें ओम के नियम का पालन नहीं होता है, अनओमीय परिपथ कहलाते हैं।” इनका प्रतिरोध नियत नहीं रहता है और $V$ एवं $I$ के बीच खींचा गया ग्राफ एक वक्र होता है। अनओमीय परिपथ के प्रतिरोध को गत्यात्मक प्रतिरोध कहते हैं और खींचे गए वक्र को अरैखिक अभिलक्षण कहते हैं।
विभव तथा धारा के बीच खींचा गया ग्राफ सरल रेखा या वक्र हो सकता है।
विशिष्ट प्रतिरोध अथवा प्रतिरोधकता —
विशिष्ट प्रतिरोध —
“किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित होने पर चालक के भीतर किसी बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता $E$ तथा धारा घनत्व $j$ के अनुपात को चालक का विशिष्ट प्रतिरोध या प्रतिरोधता कहते हैं।” इसे $ρ$ से प्रदर्शित करते हैं। अर्थात —
$ρ=E/j $विशिष्ट प्रतिरोध चालक के पदार्थ का अभिलाक्षणिक गुण है।
माना किसी चालक तार की लम्बाई $l$ तथा अनुप्रस्थ परिच्छेद का क्षेत्रफल $A$ है। माना चालक के सिरों के बीच $V$ विभवान्तर लगाने पर स्थाई धारा $i$ बहती है। माना तार के सभी बिन्दुओं पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता $E$ तथा नियत धारा घनत्व $j$ है।
अतः तार के भीतर किसी बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता —
$E=V/l $तथा धारा घनत्व —
$j =i/A $
अतः तार के पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध —
$ρ=E/j=(V∕l)/(i∕A) $
$ρ={V×A}/{i×l}=(V/i) A/l $
परन्तु चालक का प्रतिरोध $R=V/i $
$ρ=R A/l $
यदि $l = 1$ मीटर तथा $A = 1$ मीटर2 तब —
$ρ=$ (R ओम)(1 मीटर $^2$)/(1 मीटर)
$ρ= R$ ओम-मीटर
अतः “किसी पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध उस पदार्थ के 1 मीटर2 लम्बे तथा एक मीटर अनुप्रस्थ-परिच्छेद के क्षेत्रफल वाले तार के प्रतिरोध के बराबर होता है।” इसे ओम-मीटर में व्यक्त करते हैं।
चूंकि $ρ=R {A/l} $इसलिए $R=ρ {l/A} $
एक निश्चित ताप पर किसी चालक के लिए ρ नियत है।
अतः $R∝{l/A}$
इस प्रकार किसी तार का प्रतिरोध उसकी लम्बाई के अनुक्रमानुपाती तथा उसके अनुप्रस्थ-परिच्छेद के क्षेत्रफल के व्युतक्रमानुपाती होता है।
विशिष्ट प्रतिरोध का मात्रक -
विशिष्ट प्रतिरोध का मात्रक ओम-मीटर होता है।विशिष्ट प्रतिरोध की विमा —
विशिष्ट प्रतिरोध $ρ$ की विमा$ρ$ की विमा=(R की विमा× A की विमा )/(l की विमा )
$={[ML^2 T^{-3} A^{-2}] [L^2]}/[L] $
$=[ML^3 T^{-3} A^{-2}]$
विशिष्ट चालकता —
किसी पदार्थ के विशिष्ट प्रतिरोध $ρ$ के व्युत्क्रम को पदार्थ की विशिष्ट चालकता कहते हैं। इसे $σ$ सिग्मा से प्रदर्शित करते हैं। अर्थात —
विशिष्ट चालकता=1/(विशिष्ट प्रतिरोध)$σ=1/ρ $
विशिष्ट चालकता का मात्रक —
$σ=1/ρ $
$σ$ का मात्रक=1/(ρ का मात्रक)=1/(ओम-मीटर)
= ओम $^{-1}$ -मीटर $^{-1}$= म्हो-मीटर$^{-1}$
विशिष्ट चालकता 1/ओम-मीटर
विशिष्ट चालकता का मात्रक (ओम-मीटर)$^{-1}$ या म्हो-मीटर$^{-1}$ होता है।
विशिष्ट चालकता की विमा —
चूंकि $σ=1/ρ $,∴विशिष्ट चालकता $σ$ की विमा=1/(विशिष्ट प्रतिरोध ρ की विमा)
$=1/{[ML^3 T^{-3} A^{-2}]}$
$=[M^{-1} L^{-3} T^3 A^2]$
धारा घनत्व $j$ तथा विशिष्ट चालकता $σ$ में सम्बंध —
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता $E$ तथा धारा घनत्व $j$ के अनुपात को चालक का विशिष्ट प्रतिरोध $ρ$ कहते हैं अर्थात —
$ρ=E/j $परन्तु विशिष्ट चालकता की परिभाषा से,
$σ=1/ρ $
या $σ=1/ρ=1/{E∕j}=j/E $
या $j=σ E$
वेक्टर रूप में, $j ⃗=σ E ⃗$
अतः धारा घनत्व = विशिष्ट चालकता × विद्युत क्षेत्र की तीव्रता
प्रतिरोध की ताप पर निर्भरता (तप परिवर्तन का प्रतिरोधकता एवं प्रतिरोध पर प्रभाव) —
किसी धात्विक चालान का ताप बढ़ने पर उसका विद्युत प्रतिरोध अर्थात प्रतिरोधकता बढ़ जाती हैं।
अतिचालकता —
विद्युत ऊर्जा तथा शक्ति (सामर्थ्य)
विद्युत ऊर्जा -
जैसा कि हम जानते हैं कि जब तार में विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो तार में मुक्त इलेक्ट्रॉन अनुगमन वेग से चलने लगते हैं। ये इलेक्ट्रॉन तार के धन आयनों से निरन्तर टकराते रहते हैं। फलस्वरूप ऊर्जा का क्षय होता रहता है।
अतः तार में विद्युत धारा के प्रवाह को बनाए रखने के लिए बाह्य स्रोत/बैटरी से लगातार ऊर्जा की आवश्यकता होती है। मुक्त इलेक्ट्रॉन इस ऊर्जा को धन आयनों को दे देते हैं। जिससे उनकी ऊष्मीय गति बढ़ जाती है और तार का ताप बढ़ जाता है। अतः बैटरी से ली गई ऊर्जा ऊष्मा में बदल जाती है। जिसे हम दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं। जैसे – बिजली के बल्ब से कमरे को गर्म रखने में, बिजली की स्त्री से कपड़े प्रेस करने में, हीटर, पानी गर्म करने की रॉड आदि में।
किसी विद्युत परिपथ में आवेश को प्रवाहित करने के लिए जो ऊर्जा व्यय/खर्च होती है। उसे विद्युत ऊर्जा कहते हैं।
माना किसी चालक तार का प्रतिरोध $R$ ओम है तथा तार के सिरों पर $V$ वोल्ट विभवान्तर लगाने पर उसमें $I$ एम्पियर की धारा $t$ सेकेंड तक प्रवाहित होती है। यदि $t$ सेकेंड में तार में प्रवाहित आवेश $q$ हो तो –
$q=it$$q$ आवेश को $V$ वोल्ट विभवान्तर पर तार के एक सिरे से दूसरे सिरे तक ले जाने में $V×q$ जूल कार्य पड़ेगा। अतः बैटरी द्वारा किया गया कार्य —
$W=V×q$ ,विभवान्तर तथा धारा के पदों में,
$W=Vit ,∵q=it$
धारा तथा प्रतिरोध के पदों में,
$W=(iR)it ,∵V=iR$
$W=i^2 Rt$
विभवान्तर तथा प्रतिरोध के पदों में,
$W=V^2/R^2 ×Rt ,∵ i=V/R $
$W=(V^2 t)/R $
Note: 1 कैलोरी=4.2 जूल
विद्युत शक्ति (सामर्थ्य) -
किसी विद्युत परिपथ में प्रति एकांक समय में खर्च होने वाली विद्युत ऊर्जा को विद्युत शक्ति कहते है।
अथवा किसी परिपथ में ऊर्जा के क्षय/व्यय होने की दर को विद्युत शक्ति कहते हैं, इसे $P$ से प्रदर्शित करते हैं।
यदि किसी विद्युत परिपथ में $t$ सेकेंड में बैटरी से ली गई विद्युत ऊर्जा $W$ जूल हो तो, परिपथ की विद्युत शक्ति या सामर्थ्य –
विद्युत शक्ति=(विद्युत ऊर्जा)/समय $⇒ P=W/t $विद्युत शक्ति (सामर्थ्य) का मात्रक जूल/सेकेंड या वाट होता है।
1 वाट=1 जूल∕सेकेंड
वाट की परिभाषा —
“यदि किसी परिपथ में 1 जूल/सेकेंड की दर से ऊर्जा क्षय हो, तो उसकी शक्ति 1 वाट कहलाती है।”
$P=Vi=i^2 R=V^2/R $
1 किलोवाट$ (kW)=10^3 $ वाट (W)
1 मेगावाट $(MW)=10^6 $ वाट
1 अश्व-शक्ति =746 वाट
यूनिट : किलोवाट-घंटा -
1 यूनिट=1 किलोवाट-घंटा=1 किलोवाट×1 घंटा
=1000 वाट×3600 सेकेंड
$=3.6×10^6 $ वाट- सेकेंड
$=3.6×10^6 $ जूल
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