7 गतिमान आवेश तथा चुम्बकीय क्षेत्र || हिंदी नोट्स || Kumar Mittal Physics class 12 chapter 7 notes in Hindi
7 गतिमान आवेश तथा चुम्बकत्व || हिंदी नोट्स || NCERT Physics class 12 chapter 4 notes in Hindi
अध्याय 7 गतिमान आवेश तथा चुम्बकत्व में हम किन विषयों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे?
- चुम्बकीय क्षेत्र की संकल्पना
- चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा
- ऑस्ट्रेड का प्रयोग
- बायो सेवर्ट का नियम
- $μ_0$ का मान, मात्रक तथा विमा
- $μ_0 $ तथा $ϵ_0$ में सम्बंध
- आपेक्षिक चुम्बकशीलता
- परिमित लंबाई के ऋजुरेखीय धारावाही चालक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता
- वृत्ताकार धारावाही कुण्डली की अक्ष के अनुदिश चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता
- धारावाही वृत्ताकार लूप अथवा कुण्डली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता
- गतिमान आवेश के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता
- एम्पियर का परिपथीय नियम
- एम्पियर के परिपथीय नियम के अनुप्रयोग
- (A) अनन्त लम्बाई के सीधे धारावाही तार के कारण चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता
- $(B)$ लम्बी परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता
- धारावाही परिनालिका क्षण चुम्बक के रुप में
- दो समांतर धारावाही चालकों के बीच विद्युत बल
अध्याय 7 गतिमान आवेश तथा चुम्बकत्व से से संबंधित सभी महत्वपूर्ण में Topic पर High Quality Notes in Hindi.
चुम्बकीय क्षेत्र की संकल्पना —
यदि हम किसी दंड चुंबक के समीप किसी बिंदु पर एक चुम्बकीय सुई रखें अथवा लटकाए तो वह सदैव एक निश्चित दिशा में ठहरती है। अतः “चुंबक के चारो ओर का वह क्षेत्र जिसमें कोई चुम्बकीय सुई रखने पर वह एक निश्चित दिशा में ठहरती है, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है।”
अथवा “किसी चुंबक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें स्थित किसी चुम्बकीय सुई पर एक बल आघूर्ण आरोपित होता है। जिसके कारण वह घूम कर एक निश्चित दिशा में ठहरती है, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है।”यदि हम किसी स्थान पर चुम्बकीय सुई को स्वतंत्रता पूर्वक लटका दे तो वह सदैव उत्तर दक्षिण दिशा में ठहरती है। इससे स्पष्ट होता है कि किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर होती है।
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा —
इस चुम्बकीय क्षेत्र के किसी बिंदु पर स्वतंत्रता पूर्वक लटकी एक छोटी चुम्बकीय सुई के दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर खींची गई रेखा की दिशा उस बिंदु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा प्रदर्शित करती है।
ऑस्ट्रेड का प्रयोग —
वैज्ञानिक ऑस्ट्रेड ने अपने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि जिस प्रकार चुम्बक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। ठीक उसी प्रकार धारावाही चालक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।
वैज्ञानिक ओस्ट्रेड ने अपने प्रयोग में एक चालक तार $AB$ को दाब कुंजी के द्वारा बैटरी के ध्रुवों से दिया तथा इस तार को एक चुम्बकीय सुई के ऊपर समांतर रखा। उन्होंने यह देखा कि जब तक तार में विद्युत धारा नहीं बहती है, तो सुई तार के समांतर बनी रहती है। जब कुंजी को दवा देते हैं तो तार में विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है और चुम्बकीय सुई विक्षेपित हो जाती है। अब यदि तार को पलट कर दूसरे सिरों से जोड़ दे तो यह विपरीत दिशा में विक्षेपित हो जाती है।
सुई के विक्षेपित होने से पता चलता है की तार में विद्युत धारा प्रवाहित होने से इसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इस प्रयोग से स्पष्ट होता है कि विद्युत धारा की उत्पत्ति होती है। अतः ओस्ट्रेड इस प्रयोग से निष्कर्ष यह निकाला है कि विद्युत धारा या गतिमान आवेश अपने चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करते हैं।
विद्युत धारा के इस प्रभाव को विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव कहते हैं।
बायो सेवर्ट का नियम —
फ्रांस के वैज्ञानिक बायो तथा सेवर्ट ने सन 1820 ईo में धारा वाही चालकों पर अनेक प्रयोगों के बाद एक नियम प्रस्तुत किया जिसे बायो सेवर्ट का नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार —
(i) चुम्बकीय क्षेत्र $B$ चालक की धारा $I$ के अनुक्रमानुपाती होता है।$ΔB ∝ i$ ,समी(1)
(ii) चुम्बकीय क्षेत्र लघु खण्ड की लम्बाई के अनुक्रमानुपाती होता है।
$ΔB ∝Δl$ ,समी(2)
(iii) चुम्बकीय क्षेत्र धारा $I$ व बिन्दु $p$ के बीच बने कोण की ज्या के अनुक्रमानुपाती होता है।
$ΔB ∝ sinθ$ ,समी(3)
(iv) चुम्बकीय क्षेत्र लघु खण्ड से $p$ की दूरी के वर्ग के व्युतक्रमानुपाती होता है।
$ΔB ∝1/r^2 $ ,समी(4)
इन चारों नियमों को मिलाने पर —
$ΔB ∝{i Δl sinθ}/r^2 $
$ΔB=μ_0/{4π} {i Δl sinθ}/r^2$, {जहां $ μ_0/{4π} $ नियतांक}
इस सम्बंध को बायो-सेवर्ट नियम कहते हैं।
$μ_0$ का मान, मात्रक तथा विमा —
$μ_0 $ को निर्वात की चुम्बकशीलता कहते हैं।$μ_0=4π×10^{-7} N∕{A^2} $
$ μ_0/{4π} =10^{-7} N∕A^2 $
$μ_0$ का $S.I.$ मात्रक $N∕{A^2} $ होता है तथा $MKS$ मात्रक $Kg-m-s^2-A^2$ होता है।
$μ_0 $ की विमा $[MLT^2 A^{-2}]$ होती है।
$μ_0 $ तथा $ϵ_0$ में सम्बंध —
$ μ_0/{4π} =10^{-7} N⁄A^2 $ ,समी(1)$ 1/{4πϵ_0} =9×10^9 {N-m^2}⁄{C^2} $ ,समी(2)
समी(1) को समी(2) से भाग देने पर —
$ {(μ_0/{4π})}/{(1/{4πϵ_0})} ={{10^{-7} N⁄{A^2}}/{{9×10^9 {N-m^2}⁄C^2}} $
$μ_0 ϵ_0=1/{9×10^16} =1/{(3×10^8)}^2 $
$μ_0 ϵ_0=1/{c^2} $
या $c=1/√(μ_0 ϵ_0) $
आपेक्षिक चुम्बकशीलता —
किसी माध्यम की चुम्बकशीलता $(μ)$ तथा निर्वात की चुम्बकशीलता $(μ_0 )$ के अनुपात को माध्यम की आपेक्षिक चुम्बकशीलता कहते हैं। इसे $(μ_r )$ से प्रदर्शित करते हैं।
$μ_r=μ/μ_0 $परिमित लंबाई के ऋजुरेखीय धारावाही चालक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता —
माना एक परिमित लम्बाई का ऋजुरेखीय धारावाही चालक $CD$ है जिसमें धारा $i$ प्रवाहित हो रही है। चालक $CD$ के समीप $r$ दूरी पर स्थित बिन्दु $P$ पर चुम्बकीय क्षेत्र ज्ञात करना है।
माना चालक $CD$ की अल्प लम्बाई $EF$ है जिसकी लम्बाई $dl$ है तथा बिन्दु $P$ से दूरी $x$ है।
माना $∠EPQ=ϕ, ∠EFP=θ$,तथा $∠FPE= dϕ$ है। लम्बाई $dl$ इतनी अल्प है कि $∠QEP=θ$ माना जा सकता है।
बायो सेवर्ट के नियमानुसार $dl$ के कारण बिन्दु $P$ पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता —
$ΔB=μ_0/{4π} {i Δl sinθ}/{x^2} $, समी(1)$∆EGF$ में,
$sinθ=$ लम्ब/कर्ण $={EG}/{EF}={EG}/{dl}$
$EG=dlsinθ$, समी(2)
$EG=dlsinθ$ का मान समी (1) में रखने पर —
$ΔB=μ_0/{4π} {i EG}/{x^2} $ ,समी(3)
$∆EGP$ में,
$sindϕ=$ लम्ब/कर्ण $={EG}/{EP}={dlsinθ}/x $
∵ $sindϕ$ बहुत छोटा है।
∴ $sindϕ= dϕ$
$dϕ={dlsinθ}/x $
$xdϕ= dlsinθ$ ,समी(4)
समी(2) और समी(4) से
$EG=dlsinθ= xdϕ$
$EG=xdϕ$ का मान समी(3) में रखने पर —
$ΔB=μ_0/{4π} {ixdϕ}/{x^2} $
$ΔB=μ_0/{4π} {idϕ}/x $, समी(5)
$∆PQE$ में,
$cosϕ=$ आधार/कर्ण $={PQ}/{PE}=r/x $
$x=r/{cosϕ} $
$x$ का यह मान समी (5) में रखने पर —
$ΔB=μ_0/{4π} {idϕ}/{(r⁄{cosϕ})} $
ΔB=μ_0/{4π} {i cosϕ dϕ}/r
यह चुम्बकीय क्षेत्र चालक $CD$ की अल्प लम्बाई $(EF=dl)$ के कारण उत्पन्न है। अतः सम्पूर्ण चालक $CD$ के कारण बिन्दु $P$ पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र —
$B=μ_0/{4π} i/r ∫_{-ϕ_1}^{ϕ_2} cosϕ dϕ$$B=μ_0/{4π} {i/r} [sinϕ dϕ]_{-ϕ_1}^{ϕ_2}$
$B=μ_0/{4π} {i/r} [sinϕ_2 - (-sinϕ_1)]$
$B=μ_0/{4π} {i/r} (sinϕ_2+ sinϕ_1)$
या $B=μ_0/{4π} {i/r} (sinϕ_1+ sinϕ_2)$ B
विशेष स्थितियां —
(i) $ϕ_1=ϕ_2=90^0 $अतः $B=μ_0/{4π} {i/r} (sin90^0+ sin90^0)$
$B=μ_0/{4π} {i/r} (1+ 1)$
$B=μ_0/{4π} {2i}/r = μ_0/{2π} i/r $
(ii) $ϕ_1=π/2 $ तथा $ϕ_2=0$
अतः $B=μ_0/{4π} {i/r} (sin90^0+ sin0^0)$
$B=μ_0/{4π} {i/r} (1+ 0)$
$B=μ_0/{4π} {i/r} $
वृत्ताकार धारावाही कुण्डली की अक्ष के अनुदिश चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता —
माना $R$ त्रिज्या की एक वृत्ताकार धारावाही कुण्डली है जिसमें i धारा प्रवाहित हो रही है। कुण्डली की अक्ष के अनुदिश, केन्द्र $O$ से $r$ दूरी पर स्थित बिन्दु $P$ पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है।
माना कुण्डली का एक अल्प अवयव $AB$ है जिसकी लम्बाई $dl$ है। $AB$ की बिन्दु $P$ से दूरी $x$ है। तब बायो सेवर्ट के नियमानुसार $dl$ के कारण बिन्दु $P$ पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता —
$ΔB={μ_0}/{4π} {i dl sinθ}/x^2 $∴ $θ= 90^0$ ,
$ΔB={μ_0}/{4π} {i dl sin90^0}/x^2 $
$ΔB={μ_0}/{4π} {i dl(1)}/x^2 $
$ΔB={μ_0}/{4π} {i dl}/x^2 $ ,समी(1)
$∆B$ को दो घटकों, अक्ष के अनुदिश क्षैतिज घटक $∆Bsinα$ तथा अक्ष के लम्बवत ऊर्ध्वाधर घटक $∆Bcosα$ में वियोजित किया जा सकता है। अक्ष के लम्बवत/ऊर्ध्वाधर घटक परस्पर बराबर व विपरीत होने के कारण एक दूसरे को निरस्त कर देंगे। अक्ष के अनुदिश घटक एक ही दिशा में होने के कारण परस्पर जुड़ जाएंगे।
अतः अक्ष के अनुदिश चुम्बकीय क्षेत्र की परिणामी तीव्रता —
$B= ∮{{μ_0}/{4π} {i dl}/{x^2} (sinα)}$
$∆OO’P$ में,
$sinα=$ लम्ब/कर्ण $=R/x $
$B= ∮{{μ_0}/{4π} {i dl}/{x^2} {R/x}}$
$B= ∮{{μ_0}/{4π} {i dlR}/{x^3}}$
$B= {μ_0}/{4π} {iR}/{x^3} ∮{dl}$
किन्तु $Σdl=2πR$ (परिधि),
$B= {μ_0}/{4π} {iR}/{x^3} (2πR)$
$B= {μ_0}/2 {iR^2}/{x^3} $ ,समी(2)
$∆OO’P$ में पाइथागोरस प्रमेय से,
$x^2= R^2+ r^2$
या $x=√(R^2+ r^2) $
यह मान समी(2) में रखने पर
$B= {μ_0}/2 {iR^2}/{√{(R^2+ r^2)}^3} $
$B= {μ_0}/2 {iR^2}/{[{(R^2+ r^2)}^{1/2}]^3}$
$B= {μ_0}/2 {iR^2}/{{(R^2+ r^2)}^{3⁄2}}$
यदि कुण्डली में फेरों की संख्या $N$ हो तब –
$B= {μ_0}/2 {NiR^2}/{{(R^2+ r^2)}^{3⁄2}} $
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा कुण्डली की अक्ष के अनुदिश होगी।
विशेष स्थितियां —
कुण्डली के केन्द्र पर $r = 0$ रखने पर,$B= {μ_0}/2 {NiR^2}/((R^2+ 0)^(3⁄2) ) $
$B= {μ_0}/2 {NiR^2}/{{(R^2)}^{3⁄2}} $
$B= {μ_0}/2 {NiR^2}/{R^3} $
$B= {μ_0}/2 {Ni}/R $
धारावाही वृत्ताकार लूप अथवा कुण्डली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता —
माना एक चालक तार को $r$ मीटर त्रिज्या के एक वृत्ताकार लूप अथवा कुण्डली के आकार में मोड़ा गया है। माना वृत्ताकार लूप अथवा कुण्डली में $i$ एम्पियर की धारा बह रही है। इस वृत्ताकार लूप अथवा कुण्डली के केन्द्र $O$ पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है।
हम वृत्ताकार लूप अथवा कुण्डली की परिधि को अनेक अल्प लम्बाइयों से मिलकर बना हुआ मान सकते हैं। माना वृत्ताकार लूप अथवा कुण्डली का एक अल्प अवयव $dl$ है।
बायो सेवर्ट के नियमानुसार $dl$ के कारण बिन्दु $PO$ पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता —
$dl$ व $r$ के बीच कोण $sinθ=90^0 $ है अतः –
$ΔB={μ_0}/{4π} {i dl sin90^0}/{r^2} ={μ_0}/{4π} {i dl(1)}/{r^2} $
$ΔB={μ_0}/{4π} {idl}/{r^2} $,समी(1)
अब सम्पूर्ण धारावाही कुण्डली के कारण बिन्दु $O$ पर चुम्बकीय क्षेत्र —
$B= Σ∆B =Σ{{μ_0}/{4π} {i dl}/{r^2}}={μ_0}/{4π} i/r^2 Σdl$
किन्तु $Σdl=2πr$ (परिधि),
∴$B={μ_0}/{4π} i/r^2 (2πr)$
$B={μ_0}/2 i/r $ न्यूटन⁄(एम्पियर-मीटर)
यदि कुण्डली में फेरों की संख्या $N$ हो तब –
$B={μ_0}/2 {N i}/r $ न्यूटन⁄(एम्पियर-मीटर)
गतिमान आवेश के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता —
माना कोई आवेश एकसमान वेग $v$ से कर रहा है तो इस आवेश को विद्युत धारा के समतुल्य माना जा सकता है। माना आवेश $q$ से $r$ दूरी पर स्थित बिन्दु $P$ पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है।
माना आवेश $∆t$ समय में $∆l$ दूरी तय करता है।$∆l$ के कारण बिन्दु $P$ पर चुम्बकीय क्षेत्र —
$ΔB={μ_0}/{4π} {i dl sinθ}/r^2 $
जहां $θ$ धारा की दिशा व $∆l$ को $P$ से मिलाने वाली रेखा के बीच का कोण है।
∵ $q= i∆t$
∴ $i=q/{∆t}$
∵ दूरी=चाल× समय
∴ $∆l= v∆t$
समी(1) में (2) व (3) से मान रखने पर —
$ΔB={μ_0}/{4π} × q/{∆t} × v∆t × {sinθ}/r^2 $
$ΔB={μ_0}/{4π} {qvsinθ}/r^2 $
सदिश रूप में, $∆B={μ_0}/{4π} q {v×r}/r^3 $
एम्पियर का परिपथीय नियम —
किसी बन्द वक्र के लिए चुम्बकीय क्षेत्र B का रेखीय समाकलन बन्द वक्र से घेरी गई वैद्धुत धारा $i$ तथा $μ_0 $ के गुणनफल के बराबर होता है। अर्थात —
$∮B ⃗ .dl ⃗=μ_0 i$माना एक ऋजुरेखीय चालक तार में धारा $I$ नीचे से ऊपर की ओर बह रही है। माना चालक तार के चारों ओर $r$ त्रिज्या का वृत्तीय पथ है जिसका केन्द्र $O$ तार पर है।
चूंकि वृत्तीय पथ के किसी बिन्दु $P$ पर चुम्बकीय क्षेत्र — $B={μ_0}/{2π} i/r $
चुम्बकीय क्षेत्र का वृत्तीय पथ के अनुदिश रेखीय समाकलन —
$∮{B. dl}= ∮{B dl cos 0^0} $
$= ∮{{μ_0}/{2π} i/r dl}$
$= {μ_0}/{2π} i/r ∮{dl}$
किन्तु $∮{dl}=2πR$ (परिधि),
$∮{B . dl}= {μ_0}/{2π} {i/r} ×(2πr)$
$∮{B. dl}= μ_0 i$
यही एम्पियर का परिपथीय नियम है।
एम्पियर के परिपथीय नियम के अनुप्रयोग
(A) अनन्त लम्बाई के सीधे धारावाही तार के कारण चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता —
माना एक अनन्त लम्बाई का सीधा धारावाही तार है जिसमें $i$ धारा प्रवाहित हो रही है। तार से $r$ दूरी पर स्थित बिन्दु $P$ पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है।
तार के परितः $P$ से होकर जाने वाला $r$ त्रिज्या का एक वृत्त खींचते हैं। वृत्त के प्रत्येक बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र समान होगा। माना तार की व्रत्तीय पथ का एक अल्प अवयव $dl$ है।
एम्पियर के परिपथीय नियम से,$∮{B. dl}= μ_0 i$
चुम्बकीय क्षेत्र का वृत्तीय पथ के अनुदिश रेखीय समाकलन —
$∮{B . dl}= ∮{B dl cos 0^0}$
$= ∮{B dl}$
$=B ∮{dl}$
किन्तु $∮{dl} =2πR$ (परिधि),
$∮{B. dl}=B (2πr)$
$B (2πr)= μ_0 i$
$B={μ_0 i}/{2πr} $
$B = {μ_0}/{2π} {i/r} $
यह अनन्त लम्बाई के सीधे धारावाही तार के कारण चुम्बकीय क्षेत्र (की तीव्रता) का व्यंजक है।
$(B)$ लम्बी परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता —
परिनालिका —
किसी विद्युतरोधी पदार्थ की बेलनाकार नलिका के ऊपर तांबे के तार लपेट देने से प्राप्त व्यवस्था परिनालिका कहलाती है। जब इसमें विद्युत धारा प्रवाहित करते हैं तो इसके भीतर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है तथा एक चुम्बक की भांति कार्य करने लगती है।
तार के सभी फेरों के केंद्रों को मिलाने वाली रेखा को परिनालिका का अक्ष कहते हैं।
माना AB एक लम्बी परिनालिका है। परिनालिका के ऊपरी सिरे की दिशा अंदर की ओर है। अंदर की ओर की दिशा $(×)$ से व्यक्त की जाती है। परिनालिका के निचले सिरे की दिशा बाहर की ओर है। बाहर की ओर की दिशा को $(.)$ से व्यक्त किया जाता है। (चित्र में) परिनालिका द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दाएं हाथ की हथेली के नियम से ज्ञात की जा सकती है।
बंद पाश $PQRS$ में एम्पियर के परिपथीय नियम से —$∫{B . dl}=μ_0 i$ ,समी(1)
आयत $PQRS$ के लिए,
$∫{B . dl} = ∮_P^Q {B . dl} + ∮_Q^R {B .dl} + ∮_R^S {B . dl} + ∮_S^P {B .dl} $
$= ∮_P^Q {Bdlcosθ} + ∮_Q^R {Bdlcosθ} + ∮_R^S {Bdlcosθ} + ∮_S^P {Bdlcosθ}$
$= ∮_P^Q {Bdlcos0°} + ∮_Q^R {Bdlcos90°} + ∮_R^S {Bdlcos90°} + ∮_S^P {Bdlcos90°} $
$= ∮_P^Q {Bdl(1)} + ∮_Q^R {Bdl(0)} + ∮_R^S {Bdl(0)} + ∮_S^P {Bdl(0)}$
$= ∮_P^Q {Bdl} + 0+0+0$
$= ∮_P^Q {Bdl}$
$=B ∮_P^Q {dl}$ ,{∵$∮_P^Q {dl}= l$}
$∫{B .dl}= Bl$ ,समी(2)
समी(1) में समी(2) से $∫{B . dl} $ का मान रखने पर —
$Bl=μ_0 i$
$B={μ_0 i}/l $ ,समी(3)
यदि एकांक लम्बाई में फेरों की संख्या $n$ है तो $l$ लम्बाई में फेरों की संख्या $nl$ होगी।
माना प्रत्येक फेरे में धारा $i_0$ है तो $nl$ फेरों में धारा $i = nli_0$
$B={μ_0 nli_0}/l $
$B=μ_0 ni$
यही धारावाही परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र का व्यंजक है।
धारावाही परिनालिका क्षण चुम्बक के रुप में —
माना एक धारावाही परिनालिका $AB$ है जिसकी लंबाई $2l$ है। परिनालिका का अत्यंत सूक्ष्म भाग $dx$ है। माना परिनालिका में $i$ धारा प्रवाहित करने पर चुम्बकीय क्षेत्र $(B)$ उत्पन्न हो जाता है। हमें इसके अक्ष के अनुदिश किसी बिंदु $P$ पर चुम्बकीय क्षेत्र $(B)$ की गणना करनी है।माना परिनालिका की एकांक लंबाई में फेरों की संख्या $N$ है।
वृताकार लूप की सूक्ष्म लंबाई $dx$ के कारण बिंदु $P$ पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र —
$={μ_0 Ndxia^2}/{2{[a^2+ x^2 ]}^{3⁄2}}$
∵ $a <<< x$ और
$={μ_0 ndxia^2}/{2{[a^2 ]}^{3⁄2}}$
$dB={μ_0 Ndxia^2}/{2r^3}$ ,समी(2)
सम्पूर्ण परिनालिका के कारण चुम्बकीय क्षेत्र —
$B=∮_{-l}^{+l} {{μ_0 nidxa^2}/{2r^3}}$
$={μ_0 nia^2}/{2r^3} ∮_{-l}^{+l} {dx}$
$={μ_0 nia^2}/{2r^3} [x]_{-l}^{+l} $
$={μ_0 nia^2}/{2r^3} [+l-(-l)]$
$={μ_0 nia^2}/{2r^3} ×2l$
$={μ_0 (n×2l)ia^2}/{2r^3} $
∵ $n ×2l = N$ (परिनालिका के कुल फेरों की संख्या)
$B={μ_0 Nia^2}/{2r^3} × {2π}/{2π}$
$={μ_0 Ni^2 A}/{4πr^3} $ , {∵$πa^2= A$}
$={μ_0}/{4π} {2NiA}/{r^3} $
$={μ_0}/{4π} {2NiA}/{r^3} $ , {∵$NiA= M$}
$B={μ_0}/{4π} {2M}/{r^3} $
∵ उपरोक्त व्यंजक छण चुम्बक के कारण अक्षीय स्थिति में $r$ दूरी पर चुम्बकीय क्षेत्र का व्यंजक होता है।
अतः स्पष्ट हो जाता है कि परिनालिका छण चुम्बक की तरह व्यवहार करती है।
दो समांतर धारावाही चालकों के बीच विद्युत बल —
माना दो धारावाही चालक तार $PQ$ व $RS$ हैं जो परस्पर समांतर $r$ दूरी पर रखे हैं। जब इनमें धारा प्रवाहित की जाती है तो चालक तारों के चारो ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होने के कारण दोनों तार एक दूसरे पर बल आरोपित करते हैं।
तार $PQ$ की धारा $i_1$ के कारण तार RS के किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र —
$ B_1={μ_0}/{2π} ({i_1}/r)$तार $RS$ की $L$ लम्बाई पर लगने वाला बल —
$ F= i_2 B_1 L sinθ$
$ F= i_2 × ({μ_0}/{2π} {i_1}/r) × L sinθ$
$F= i_2 × ({μ_0}/{2π} {i_1}/r) × L sin90^0$
$ F= i_2 × ({μ_0}/{2π} {i_1}/r) ×L$
तार $RS$ की प्रति मीटर लंबाई पर लगने वाला बल —
$ F/L= {μ_0}/{2π} ({i_1 i_2}/r)$ ,न्यूटन
इसी प्रकार तार $RS$ की धारा $i_2$ के कारण तार $PQ$ की प्रति मीटर लंबाई पर लगने वाला बल —
$ F/L= {μ_0}/{2π} ({i_1 i_2}/r)$ ,न्यूटन
यदि $i_1 = i_2 = i$ हो तो —
$ F/L= {μ_0}/{2π} ({i^2}/r)$ ,न्यूटन
Moving Charge and Magnetic Field : Complete Notes.
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