8 धारा-लूप पर बल-युग्म का आघूर्ण : चल कुण्डली धारामापी || हिंदी नोट्स || Kumar Mittal Physics class 12 chapter 8 notes in Hindi
8 धारा-लूप पर बल-युग्म का आघूर्ण : चल कुण्डली धारामापी || हिंदी नोट्स || NCERT Physics class 12 chapter 8 notes in Hindi
अध्याय 8 धारा-लूप पर बल-युग्म का आघूर्ण : चल कुण्डली धारामापी में हम किन विषयों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे?
- धारामापी
- चल कुंडली धारामापी
- चल कुंडली धारामापी के प्रकार
- निलंबित कुंडली धारामापी
- कीलकित कुंडली धारामापी
- धारामापी की सुग्राहिता
- धारा मापी की वोल्टेज सुग्राहिता
- धारामापी का अमीटर में रूपांतरण (परिवर्तन)
- धारामापी का वोल्टमीटर में रूपांतरण (परिवर्तन)
- धारा लूप चुम्बकीय द्विध्रुव के रुप में
- एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित चुम्बकीय द्विध्रुव पर लगने वाले बल युग्म का आघूर्ण
- चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण (दंड चुम्बक के लिए)
- चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण (बंद धारावाही लूप के लिए)
- बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकीय द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा (एवं घुमाने में किया गया कार्य)
- एक समान बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाला बल
- एक समान चुम्बकीय क्षेत्र में रखी कुण्डली को घुमाने में उसके सिरों के बीच प्रेरित विद्युत बल
अध्याय 8 धारा-लूप पर बल-युग्म का आघूर्ण : चल कुण्डली धारामापी से संबंधित सभी महत्वपूर्ण में Topic पर High Quality Notes in Hindi.
धारामापी —
किसी विद्युत परिपथ में धारा की उपस्थिति ज्ञात करने के लिए तथा धारा मापन के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरण को धारामापी (गैल्वेनोमीटर) कहते हैं।
चल कुंडली धारामापी —
यह विद्युत धारा के संसूचन तथा मापन में प्रयोग किया जाने वाला एक उपकरण है। चल कुंडली धारामापी की क्रिया चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही कुंडली पर कार्यरत बल-आघूर्ण पर आधारित होती है। इसे चल कुंडली धारामापी कहते हैं।
चल कुंडली धारामापी के प्रकार —
चल कुंडली धारामापी दो प्रकार के होते हैं।
- निलंबित कुंडली धारामापी
- कीलकित कुंडली धारामापी।
निलंबित कुंडली धारामापी —
दोनों प्रकार की धारामापियों का सिद्धांत व कार्य विधि एक ही होती है परंतु उनकी संरचना में थोड़ा सा अंतर होता है।
निलंबित कुंडली धारामापी में कुंडली को ब्रांज की पतली पन्नी से लटकाया जाता है तथा कुंडली का विच्छेद लैंप तथा पैमाने की व्यवस्था से मापा जाता है।
जबकि निलम्बित कुंडली धारामापी में विच्छेप को संकेतक से वृताकार पैमाने पर पढ़ा जाता है।
संरचना —
चल कुंडली धारामापी की त्रिज्या चुंबकीय क्षेत्र वाली कुंडली है। जिसके घूर्णन करने वाले अक्ष पर अनेक फेरे होते हैं। इस कुंडली के भीतर नाम लोहे का एक बेलन का टुकड़ा रखा जाता है जो चुंबकीय क्षेत्र को नरम बनता है। कुंडली तांबे के पतले पृथक्करण तारों को एल्युमिनियम के फ्रेम पर लपेटकर बनाई जाती है।
सिद्धांत —
जब धारामापी कुंडली को एक समान चुंबकीय क्षेत्र में रखते हैं तो उसे पर एक बल आघूर्ण कार्य करता है जो कुंडली को चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत लाने का प्रयास करता है।
कार्य विधि —
जब कुंडली में कोई विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो कुंडली पर एक बल आघूर्ण $τ=NiABsinθ$ कार्य करने लगता है। इस बल आघूर्ण के कारण कुंडली अपने अक्ष पर घूर्णन करती है। कुंडली से जुड़ी कमानी कुंडली के घूर्णन का विरोध करती है। जिसके कारण कुंडली पर एक प्रत्यानयन बल युग्म आरोपित हो जाता है।
यदि कमानी में ऐंठन आघूर्ण $k$ तथा विक्षेप $ϕ$ हो तो प्रत्यानयन बल युग्म आघूर्ण —
$τ=kϕ$साम्यावस्था में,
बल युग्म का आघूर्ण = प्रत्यानयन बल युग्म का आघूर्ण
$NiAB=kϕ$
$i={kϕ}/{NAB} $
तथा $ϕ={NiAB}/k $
अतः धारामापी की सुग्राहिता —
$S_i={ϕ/i}={NAB}/k $
धारामापी की सुग्राहिता –
यदि किसी धारामापी में थोड़ी सी धारा प्रवाहित करने से ही पर्याप्त विच्छेप $(ϕ)$ आ जाए तो धारामापी को सुग्राही कहते हैं। अर्थात कुंडली में एकांक धारा प्रवाहित करने पर उसमें उत्पन्न विक्षेप को धारामापी की सुग्राहिता कहते हैं।
धारामापी की सुग्राहिता,$Si=ϕ/I={NAB}/C $
मात्रक – रेडियन/एम्पियर
विमा – [A-1]
अतः $N, A$ व $B$ का मान बढ़ाकर तथा $C$ का मान कम करके धारामापी की सुग्राहिता बढ़ाई जा सकती है।
धारामापी की वोल्टेज सुग्राहिता –
यदि कुण्डली के सिरों के बीच वोल्टेज $V$ हो तो राशि $ϕ/V$ को वोल्टेज सुग्राहिता कहते हैं।
धारा मापी की वोल्टेज सुग्राहिता —$Sv=ϕ/V=ϕ/{IR}$, चूंकि {V=IR}$ϕ/I={NAB}/C$
$Sv={NAB}/{CR} $
$Sv={Si}/R $ तथा $Si={NAB}/C $
धारामापी का अमीटर में रूपांतरण (परिवर्तन) —
अमीटर —
अमीटर एक निम्न प्रतिरोध का धारामापी यन्त्र होता है जिसकी सहायता से किसी परिपथ में बहने वाली धारा को सीधे एम्पियर में मापा जाता है।
अथवा अमीटर निम्न प्रतिरोध का एक धारा मापी होता है जो किसी परिपथ में धारा की प्रबलता को सीधे एम्पियर में मापता है।
किसी विद्युत परिपथ में धारा मापने के लिए अमीटर को सदैव श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता है जिससे प्रभावित प्रतिरोध बढ़ जाता है और धारा का मन घट जाता है अतः परिपथ में मी धारा का शुद्ध मापन नहीं कर पता है अतः धारा के शुद्ध मापन के लिए प्रतिरोध निम्नतम होना चाहिए अतः एक आदर्श अमीटर का विद्युत प्रतिरोध शून्य होना चाहिए।
अमीटर के स्वयं के प्रतिरोध की वजह से परिपथ का तुल्य प्रतिरोध बढ़ जाता है। जिसके कारण धारा का मान कम हो जाता है। अतः अमीटर परिपथ में प्रवाहित धारा के मान का शुद्ध मापन नहीं कर पाता है। अतः एक आदर्श अमीटर का विद्युत प्रतिरोध शून्य होना चाहिए।
अमीटर में रूपांतरण —
धारामापी को अमीटर में परिवर्तित (रूपांतरित) करने के लिए उसकी कुण्डली के साथ समान्तर क्रम में बहुत कम प्रतिरोध का एक तार जोड़ दिया जाता है। जिसे शण्ट $(S)$ कहते हैं।
माना एक धारामापी जिसे अमीटर में बदलना है उसका प्रतिरोध $G$ है तथा इसके समान्तर लगाए गए शण्ट का प्रतिरोध $S$ है। माना अमीटर अधिकतम धारा $i$ माप सकता है।
धारामापी में धारा $= ig$शण्ट धारामापी में धारा $=i- ig$
क्योंकि धारामापी $G$ व शण्ट $S$ समांतर क्रम में हैं। अतः विभवान्तर समान होगा। अर्थात
धारामापी का विभवान्तर = शण्ट का विभवान्तर
$V_g= V_s $
चूंकि $ V= iR$ ,
$i_g× G= (i- i_g )× S$
$S={i_g G}/{i- i_g }$
पुनः ,$i_g× G= (i- i_g )× S$
$i_g G= iS- i_g S$
$i_g S+ i_g G= iS$
$i_g (S+ G)= iS$
$i_g={iS}/{S+ G} $
धारामापी का वोल्टमीटर में रूपांतरण (परिवर्तन) —
वोल्टमीटर —
वोल्टमीटर एक ऐसा उपकरण है जिसकी सहायता से किसी विद्युत परिपथ के किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर को सीधे वोल्ट में मापा जाता है।
वोल्टमीटर के अपने प्रतिरोध के कारण उन दोनों बिन्दुओं के बीच विभवान्तर भी परिवर्तित हो जाता है। अतः वोल्टमीटर उन बिन्दुओं के बीच विभवान्तर के मान का शुद्ध मापन नहीं कर पाता है। अतः एक आदर्श वोल्टमीटर का विद्युत प्रतिरोध अनन्त होना चाहिए।
धारामापी को वोल्टमीटर में परिवर्तित करने के लिए धारामापी $G$ के साथ श्रेणी क्रम में एक उच्च प्रतिरोध का चालक तार जोड़ दिया जाता है।
माना धारामापी कुण्डली का प्रतिरोध $G$ है तथा चालक तार का प्रतिरोध $R$ है। यदि इस संयोजन में $ig$ धारा प्रवाहित करने पर इसके सिरों पर ओम के नियम से विभवान्तर —
$V= i_g (G+ R)$$V= i_g G+ i_g R$
$V- i_g G= i_g R$
$ig$ का दोनों पक्षों में भाग देने पर —
$ V/i_g -G= R$
$R= V/{i_g} -G$ या $R={V- i_g G}/{i_g} $
धारावाही लूप चुम्बकीय द्विध्रुव के रुप में —
यदि एक धारा लूप को स्वतंत्रता पूर्वक घूमने के लिए लटकाया जाए तो यह एक निश्चित दिशा में ठहरता है। लूप का तल दंड चुंबक की तरह उत्तर दक्षिण दिशा में लंबवत ठहरता है। अब यदि दो धारा लूप एक दूसरे के निकट लायें या दंड चुंबक को तो यह एक दूसरे को आकर्षित या प्रतिकर्षित करते हैं। इस प्रकार धारा लूप का व्यवहार ठीक दंड (छड़) चुंबक के व्यवहार की तरह ही है। यदि आंख से देखने पर धारा लूप के समीपवर्ती सिरे पर धारा वामावर्त (Anti-clockwise) है, तो वह सिरा उत्तरी ध्रुव तथा आंख से दूर वाला सिरा दक्षिणी ध्रुव की तरह कार्य करता है। इसके विपरीत यदि प्रेक्षक की आंख से देखने पर यदि धारा लूप के समीपवर्ती सिरे में धारा की दिशा दक्षिणावर्त (clockwise) है, तो वह सिरा दक्षिणी ध्रुव तथा दूर वाला सिरा उत्तरी ध्रुव की तरह कार्य करता है।
इस प्रकार धारा लूप चुंबकीय द्विध्रुव के रूप में व्यवहार करता है।
एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित चुम्बकीय द्विध्रुव पर लगने वाले बल युग्म का आघूर्ण —
माना $NS$ एक चुंबकीय द्विध्रुव है जिसकी लंबाई $2l$ है, तथा ध्रुव प्रबलता $m$ है। इसे एक समान चुंबकीय क्षेत्र ${B ⃗}$ की दिशा से $θ$ कोण पर रखा है। उत्तरी दिशा में $mB$ बल, क्षेत्र की दिशा में तथा दक्षिणी ध्रुव पर $mB$ बल, क्षेत्र की विपरीत दिशा में कार्य करता है। जिससे बल युग्म का निर्माण होता है।
बल युग्म का आघूर्ण = एक बल × दोनों बलों के बीच की लंबवत दूरी
$τ= mB× NP$ ,समी(1)समकोण $∆SPN$ में,
$sinθ={NP}/{SN} $
$NP= SN sinθ$
$NP= 2l sinθ $ ,समी(2)
समी(2) से $NP$ का मान समी(1) में रखने पर —
τ= mB×2l sinθ$
τ= m×2l×Bsinθ$
$τ=MBsinθ$ {∵$M= m×2l$}
सदिश रुप में,
$τ ⃗= M ⃗× B ⃗$
विशेष स्थितियां
(1) जब $θ=0^0 $ हो तो $sinθ=0$,अतः $τ= MBsin0°=0$
यदि चुंबक चुंबकीय क्षेत्र के समांतर हो तो बल युग्म आघूर्ण शून्य होगा।
(2) जब $θ=90°$ हो तो $sin90°=1$,
अतः $τ_{max}=MBsin90°= MB$
यदि चुंबक चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत हो तो बल युग्म आघूर्ण अधिकतम $τ_{max}= MB$ होगा।
चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण (दंड चुम्बक के लिए) –
दंड चुंबक के लिए उस चुंबक के किसी एक ध्रुव के परिमाण और उनके बीच की दूरी का गुणनफल दंड चुंबक का चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण कहलाता है। इसे $M$ से प्रदर्शित करते हैं। यह एक अदिश राशि होती है। इसकी दिशा $N→S$ की ओर होती है।
माना एक चुंबकीय द्विध्रुव $NS$ है। जिसकी लंबाई $2l$ है तथा प्रत्येक सिरे पर ध्रुव प्रबलता m है।
$M = m×2l$चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण (बंद धारावाही लूप के लिए) –
किसी लूप में प्रवाहित धारा $i$ और लूप के क्षेत्रफल $A$ के गुणनफल को चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण कहते हैं। इसकी दिशा सीधे हाथ के नियम से ज्ञात की जाती है।
$M = i×A$बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकीय द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा (एवं घुमाने में किया गया कार्य) —
माना एक चुम्बकीय द्विध्रुव $NS$ है, जिसका चुम्बकीय आघूर्ण $M$ है, एक एक समान चुम्बकीय क्षेत्र ($B) ⃗$ में रखा है।
इस स्थिति में द्विध्रुव पर कार्यरत बल युग्म का आघूर्ण —
$τ= MBsinθ$इस स्थिति में द्विध्रुव को सूक्ष्म कोण dθ तक घुमाने में किया गया कार्य —
$dW=τdθ= MBsinθ$
इसी प्रकार $θ_1 $ से $θ_2$ कोण तक घुमाने में किया गया कुल कार्य —
$W=∫_{θ_1}^{θ_2}MBsinθ dθ$
$= MB ∫_{θ_1}^{θ_2} sinθ dθ$
$= MB [-cosθ]_{θ_1}^{θ_2} $
$= -MB [cosθ]_{θ_1}^{θ_2} $
$= -MB[cosθ_2-cosθ_1 ]$
या $W= MB[cosθ_1-cosθ_2 ]$
यही कार्य द्विध्रुव में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। अतः बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकीय द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा —
$U= MB[cosθ_1-cosθ_2 ]$एक समान बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाला बल —
माना एक धारावाही चालक तार $AB$ है जो एक समान चुम्बकीय क्षेत्र $B ⃗$ में रखा है। तार की लम्बाई $l$ है।
अब चालक तार में धारा $i$ प्रवाहित करने पर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। दोनों चुम्बकीय क्षेत्रों की क्रिया रेखा के फलस्वरूप चालक तार लगने वाला बल $F$ निम्न लिखित बातों पर निर्भर करता है —
(1) बल $F$, चालक तार में प्रवाहित विधुत धारा $i$ के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात —
$F∝ i$ ,समी(1)(2) चालक तार की लम्बाई $l$ के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात —
$F∝ l $ ,समी(2)(3) बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात —
$F∝ B$ ,समी(3)(4) $sinθ$ के तार अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात —
$F∝ sinθ$ ,समी(4)उपरोक्त चारो समीकरणों को मिलाकर लिखने पर —
$F∝ ilBsinθ$$F=k ilBsinθ$
यदि $k = 1$ तो,
$F= ilBsinθ$ ,समी(5)
सदिश रुप में,
$F= i(l ⃗× B ⃗ )$ ,{∵$ absinθ= a ⃗×b ⃗$ }
विशेष स्थितियां —
(1) अब यदि $θ=0°$ हो तो, $sin0°=0$ तब —$F= ilBsin0°=ilB(0)= 0$
इस प्रकार यदि धारावाही चालक चुम्बकीय क्षेत्र B ⃗ के समांतर हो तो चालक पर लगने वाला बल शून्य होता है।
(2) अब यदि $θ=90°$ हो तो, $sin90°=1$ तब —$F= ilBsin90°=ilB(1)= ilB$
इस प्रकार यदि धारावाही चालक चुम्बकीय क्षेत्र $B ⃗$ के लम्बवत हो तो चालक पर लगने वाला बल अधिकतम होता है।
एक समान चुम्बकीय क्षेत्र में रखी कुण्डली को घुमाने में उसके सिरों के बीच प्रेरित वैद्धुत बल —
माना एक समान चुम्बकीय क्षेत्र $B ⃗$ में एक आयताकार कुण्डली $PQRS$ रखी है। जिसका क्षेत्रफल $A$ है तथा उसमें फेरों की संख्या $N$ है। किसी क्षण कुण्डली का क्षेत्रफल सदिश, चुम्बकीय क्षेत्र $B ⃗$ की दिशा के साथ $θ$ कोण बनाता है।
माना कुण्डली का चुम्बकीय फ्लक्स $ϕ$ है तो —$ϕ= BAcosθ$
∵$ω=θ/t ⇒θ=ωt$
∴$ϕ= BA cosωt$ ,समी(1)
समी(1) का $t$ के सापेक्ष अवकलन करने पर —
$ {dθ}/{dt}=d/{dt} BAcosωt$
$= BA×ω×(-sinωt)$
$ {dθ}/{dt}= -BA ω sinωt$
फैराडे के प्रथम नियम से —
$e= -{Ndϕ}/{dt} $ ,समी(2)
समी(1) से ${dθ}/{dt}$ का मान (2) में रखने पर —
$e= -N× -BA ω sinωt$
$e= NBA ω sinωt$ ,समी(3)
विशेष स्थिति —
अधिकतम विद्धुत वाहक बल $e_0 $ के लिए $sinωt=1$ तो —$e_0= NBA(1)= NBAω$
$e_0$ का मान समी (3) में रखने पर —
$e= e_0 sinωt$
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