6 किरचाफ के नियम तथा विद्युत परिपथ || हिंदी नोट्स || Kumar Mittal Physics class 12 chapter 6 notes in Hindi
6 किरचॉफ के नियम तथा विद्युत परिपथ || हिंदी नोट्स || NCERT Physics class 12 chapter 6 notes in Hindi
अध्याय 6 किरचॉफ के नियम तथा विद्युत परिपथ में हम किन विषयों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे?
- विद्युत सेल
- विद्युत सेल के प्रकार
- (1) प्राथमिक सेल
- (2) द्वितीयक सेल
- सेल का विद्युत वाहक बल
- वोल्ट की परिभाषा
- टर्मिनल विभवान्तर
- सेल का आंतरिक प्रतिरोध
- सेल के आंतरिक प्रतिरोध को प्रभावित करने वाले कारक
- सेल के टर्मिनल विभवान्तर $V$, विद्युत वाहक बल $E$ तथा आंतरिक प्रतिरोध $r$ में सम्बंध
- विद्युत सेलों का संयोजन
- (1) विद्युत सेलों का श्रेणीक्रम संयोजन
- (2) विद्युत सेलों का समान्तर (पार्श्व) क्रम संयोजन
- किरचॉफ के नियम
- (1) पहला नियम (संधि अथवा धारा का नियम)
- (2) दूसरा नियम (पाश अथवा वोल्टता का नियम) —
- व्हीटस्टोन सेतु
- व्हीटस्टोन सेतु की संरचना/सिद्धांत/कार्यविधि
अध्याय 6 किरचॉफ के नियम तथा विद्युत परिपथ से संबंधित सभी महत्वपूर्ण में Topic पर High Quality Notes in Hindi.
विद्युत सेल —
“विद्युत सेल एक ऐसी युक्ति है जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल देती है तथा किसी परिपथ में आवेश के प्रवाह को निरंतर बनाए रखती है।”
अथवा “विद्युत सेल वह युक्ति होती है जो किसी विद्युत परिपथ के किन्ही दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर को स्थिर रखकर आवेश के प्रवाह को निरन्तर बनाये रखती है।”
विद्युत सेल में धातु की दो छड़े होती हैं। जिन्हें इलेक्ट्रोड या प्लेटें कहते हैं। ये प्लेटें एक द्रव में डूबी रहती है जिसे विद्युत अपघट्य कहते हैं। विद्युत अपघट्य की यह विशेषता होती है कि प्लेटों को विद्युत अपघट्य में डुबोने पर एक प्लेट धन आवेशित हो जाती है तथा दूसरी प्लेट ऋण आवेशित हो जाती है। धनावेशित (+) प्लेट को धन इलेक्ट्रोड या एनोड कहते हैं जबकि ऋण आवेशित (–) प्लेट को ऋण इलेक्ट्रोड या कैथोड कहते हैं। जब दोनों प्लेटों को किसी तार से जोड़ देते हैं तो परिपथ में आवेश प्रवाहित होने लगता है।
विद्युत अपघट्य में रासायनिक क्रिया होती रहती है जो प्लेटों पर आवेश की कमी को पूरा करती है तथा चालक तार में आवेश के प्रवाह को निरंतर बनाए रखती है। अतः सेल के भीतर होने वाली रासायनिक क्रिया में जो ऊर्जा मुक्त होती है वही परिपथ में विद्युत आवेश को प्रवाहित करती है।
इस प्रकार विद्युत सेल रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है।
विद्युत सेल के प्रकार—
विद्युत सेल मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।
- प्राथमिक सेल
- द्वितीयक सेल
(1) प्राथमिक सेल —
वे सेल जो रासायनिक ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं प्राथमिक सेल कहलाते हैं।
अथवा वे सेल जिनको पुनः आवेशित नहीं किया जा सकता है प्राथमिक सेल कहलाते हैं।
जैसे — लेक्लांशे से सेल डेनियल सेल शुष्क सेल आदि।
(2) द्वितीयक सेल —
वे सेल जिनमें विद्युत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप में संचित किया जाता है और आवश्यकता पड़ने पर रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल जाता है, द्वितीयक सेल कहलाते हैं।
अथवा वे सेल जिनको पुनः आवेशित किया जा सकता है द्वितीयक सेल कहलाते हैं।
जैसे — सीसा संचायक सेल, क्षारीय सेल आदि।
सेल का विद्युत वाहक बल —
“एकांक आवेश को पूरे परिपथ में (सेल सहित) प्रवाहित करने पर सेल द्वारा दी गई ऊर्जा या किए गए कार्य को सेल का विद्युत वाहक बल कहते हैं। इसे $E$ से प्रदर्शित करते हैं।”
किसी सेल का विद्युत वाहक बल $E$ सेल के भीतर ऋण इलेक्ट्रोड (निम्न विभव) से धन इलेक्ट्रोड (उच्च विभव) की ओर दिष्ट (प्रवाहित) होता है।
यदि किसी परिपथ में $q$ आवेश प्रवाहित होने में सेल द्वारा दी गई ऊर्जा (या किया गया कार्य) $W$ हो तो —
सेल का सेल का विद्युत वाहक बल = कार्य/आवेश$E=W/q$ जूल⁄कूलाम या (वोल्ट)
विद्युत वाहक बल का मात्रक —
“विद्युत वाहक बल का मात्रक जूल∕कूलाम या वोल्ट होता है।”
वोल्ट की परिभाषा —
यदि $W= 1$ जूल, $q=1$ कूलाम ,$E=1$ वोल्ट
“अतः यदि किसी परिपथ में 1 कूलाम आवेश प्रवाहित करने पर सेल द्वारा दी गई ऊर्जा 1 जूल हो, तो सेल का विद्युत वाहक बल 1 वोल्ट होता है।”
टर्मिनल विभवान्तर —
“किसी परिपथ के दो बिन्दुओं के बीच एकांक आवेश को प्रवाहित करने में किए गए कार्य को सेल का ‘टर्मिनल विभवान्तर’ कहते हैं। इसे $V$ से प्रदर्शित करते हैं। इसका मात्रक वोल्ट होता है।”
यदि विद्युत परिपथ के दो बिन्दुओं के बीच q कूलाम आवेश प्रवाहित करने में $W’$ जूल कार्य किया जाये तो उन बिन्दुओं के बीच टर्मिनल विभवान्तर —
$V=W^'/q$ वोल्टसेल का आंतरिक प्रतिरोध —
जब किसी सेल की प्लेटों को किसी चालक तार द्वारा जोड़ दिया जाता है, तो तार में धन प्लेट से ऋण प्लेट की ओर तथा सेल के भीतर विलयन में ऋण प्लेट से ओर धन प्लेट की ओर धारा बहने लगती है। जिस प्रकार तार विद्युत धारा के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करता है। उसी प्रकार सेल का घोल भी धारा के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करता है। इस अवरोध को सेल का आंतरिक प्रतिरोध कहते हैं।
अतः “सेल के भीतर सेल के विद्युत अपघट्य द्वारा विद्युत धारा के मार्ग में उत्पन्न प्रतिबाधा या रुकावट को सेल का आंतरिक प्रतिरोध कहते हैं।”
सेल के आंतरिक प्रतिरोध को $r$ से प्रदर्शित करते हैं तथा इसका मात्रक ओम $(Ω)$ होता है।
अथवा “सेल के भीतर घोल द्वारा, सेल की दोनों प्लेटों के बीच विद्युत धारा के प्रवाह में अवरोध को सेल का आंतरिक प्रतिरोध कहते हैं। इसे $r$ से प्रदर्शित किया जाता है।”
सेल के आंतरिक प्रतिरोध को प्रभावित करने वाले कारक —
सेल का आंतरिक प्रतिरोध निम्न बातों पर निर्भर करता है —
- सेल का आंतरिक प्रतिरोध प्लेटों के बीच की दूरी पर निर्भर करता है।
- यह घोल में डूबे प्लेटों के क्षेत्रफल के व्युतक्रमानुपाती होता है।
- यह विद्युत अपघट्य की सांद्रता बढ़ने पर बढ़ता है।
- सेल का आंतरिक प्रतिरोध विद्युत अपघट्य एवं प्लेटों के पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है।
सेल के टर्मिनल विभवान्तर $V$, विद्युत वाहक बल $E$ तथा आंतरिक प्रतिरोध $r$ में सम्बंध —
माना एक विद्युत सेल जिसका विद्युत वाहक बल $E$ तथा आंतरिक प्रतिरोध $r$ है। इस सेल को एक कुंजी $K$ के द्वारा $R$ प्रतिरोध के तार व अमीटर $A$ से जोड़ा गया है। सेल के सिरों के बीच एक वोल्टमीटर $V$ जोड़ा गया है। कुंजी $K$ को बंद करने पर विद्युत सेल परिपथ में विद्युत धारा भेजने लगती है। जिसका मान अमीटर में पढ़ लेते हैं। माना अमीटर का पाठ्यांक $i$ तथा वोल्टमीटर का पाठ्यांक V है।
माना परिपथ में $t$ समय के लिए विद्युत धारा $i$ प्रवाहित होती है। यदि $t$ समय में प्रवाहित आवेश की मात्रा $q$ हो तो सेल द्वारा दी गई ऊर्जा अर्थात सेल द्वारा किया गया कार्य —
$W= Eq$$W= Eit$ , समी(i) {चूंकि $q=it$}
चूंकि विद्युत सेल के बाहर प्रतिरोध R के सिरों के बीच विभवान्तर $V$ है। अतः विद्युत सेल के बाहर किया गया कार्य —
$W_{outer}= Vit$ समी(ii)जब परिपथ में विद्युत धारा $i$ बहती है तो सेल में विभव पतन होता है। यदि सेल का आंतरिक प्रतिरोध $r$ है तब विभव पतन —
$V^'= ir$चूंकि विद्युत सेल के भीतर प्रतिरोध r के सिरों के बीच विभवान्तर $V’$ है। अतः विद्युत सेल के भीतर किया गया कार्य —
$W_{inner}= V^' it=(ir).it$$W_{inner}= i^2 rt$ समी(iii)
ऊर्जा संरक्षण के नियम से, सेल के भीतर तथा बाहर किया गया कुल कार्य —
$W=W_outer+ W_inner$समी $(i), (ii), (iii)$ से मान रखने पर —
$Eit= Vit+ i^2 rt$
$Eit= it(V+ ir)$
$E= V+ ir$ या $V= E- ir$ समी(iv)
Note :— किसी भी सेल के लिए विद्युत वाहक बल विद्युत सेल की अपनी विशेषता है तथा इसका मान एक सेल के लिए स्थिर (नियत) रहता है, जबकि सेल से अधिकाधिक धारा $i$ लेने पर टर्मिनल विभवान्तर $V$ का मान घटता जाता है। यदि $i=0$
$V= E-(0)r$$V= E$ समी(v)
अतः जब विद्युत सेल से धारा नहीं ली जाती है अर्थात विद्युत सेल का परिपथ खुला होता है, तब विद्युत सेल की प्लेटों के बीच टर्मिनल विभवान्तर सेल के विद्युत वाहक बल के बराबर होता है।
पुनः यदि विद्युत परिपथ में धारा $i$ हो तो प्रतिरोध $R$ के सिरों के बीच विभवान्तर —
$V= iR$ समी(vi)समी (iv) से,
$V= E- ir$
$ir= E- V$
$r ={E- V}/i= {E- V}/{V∕R}={R(E-V)}/V$
$r ={E- V}/i= {E- V}/{V∕R}= R(E/V-1)$,समी(vii)
समी (iv) से $V$ का मान समी(vi) में रखने पर
$V= iR$
$E- ir= iR$
$E= iR+ ir$
$E= i(R+r)$
$i=E/(R+r)$ ,समी(viii)
Note: जब सेल से धारा ली जाती है तो $V= E – ir$ तथा जब सेल को धारा दी जाती है तो $V= E + ir$ होता है।
विद्युत सेलों का संयोजन —
सेल का उपयोग विद्युत परिपथ में धारा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। एक सेल से बहुत कम विद्युत धारा प्राप्त होती है। अतः परिपथ से अधिक धारा प्राप्त करने के लिए दो या दो से अधिक सेलों का संयोजन किया जाता है।
अतः “दो या दो से अधिक सेलों को जोड़ने की प्रक्रिया को सेलों का संयोजन कहते हैं।”
विद्युत सेलों का संयोजन के प्रकार —
विद्युत सेलों को मुख्यतः तीन प्रकार से जोड़ा या संयोजित किया जाता है।
- श्रेणीक्रम संयोजन
- समांतर क्रम संयोजन
- मिश्रित क्रम संयोजन
(1) विद्युत सेलों का श्रेणीक्रम संयोजन —
श्रेणीक्रम संयोजन में प्रत्येक सेल के ऋण सिरे को इसके आगे वाली सेल के धन सिरे से जोड़ते हैं। दूसरे सेल के ऋण सिरे को इसके आगे वाली सेल के धन सिरे से जोड़ते चले जाते हैं।
माना $n$ सेलों को श्रेणीक्रम में एक बाह्य प्रतिरोध $R$ से गया है जिनमें प्रत्येक सेल का विद्युत वाहक बल क्रमशः $E$ तथा आंतरिक प्रतिरोध $r$ है।
तब संयोजित सेलों का कुल विद्युत वाहक बल —$E=E+E+E+⋯E_n=nE$
तथा संयोजित सेलों का कुल आन्तरिक प्रतिरोध —
$r^'=r+r+r+ …r_n=nr$
अतः परिपथ का कुल प्रतिरोध $= r'+R=nr+R$
अतः परिपथ में धारा $I=E/{nr+R}$
(i) यदि $R≫nr$ तो $I={nE}/R$ (about)
अतः यदि सेलों का आंतरिक प्रतिरोध, बाह्य प्रतिरोध की तुलना में बहुत कम हो तो सेलों को श्रेणीक्रम में जोड़कर अधिक धारा प्राप्त की जा सकती है।
(ii) यदि $nr≫R$ तो $I={nE}/{nr}=E/r$ (about)
अतः यदि सेलों का आंतरिक प्रतिरोध, बाह्य प्रतिरोध की तुलना में बहुत अधिक हो तो सेलों को श्रेणीक्रम में जोड़ने से कोई लाभ नहीं होता है।
(2) विद्युत सेलों का समान्तर (पार्श्व) क्रम संयोजन —
समान्तर क्रम संयोजन में प्रत्येक सेल के धन सिरे को एक बिन्दु से तथा प्रत्येक ऋण सिरे को दूसरे बिन्दु से जोड़ते हैं।
माना $n$ सेलों को समान्तर क्रम में एक बाह्य प्रतिरोध $R$ से गया है जिनमें प्रत्येक सेल का विद्युत वाहक बल क्रमशः $E$ तथा आंतरिक प्रतिरोध $r$ है। चूंकि सभी सेलें समांतर क्रम में जुड़ी हैं।
तब संयोजित सेलों का कुल विद्युत वाहक बल $= E$तथा संयोजित सेलों का कुल आन्तरिक प्रतिरोध —
$1/r^' =1/r+1/r+1/r+⋯1/r_n =n/r⇒r^'=r/n$
अतः परिपथ का कुल प्रतिरोध $= r'+R=r/n+R$
अतः परिपथ में धारा $I=E/(r/n+R)={nE}/{r+nR}$
(i) यदि $R≫nr$ तो $I={nE}/{nR}=E/R$
अतः यदि सेलों का आंतरिक प्रतिरोध, बाह्य प्रतिरोध की तुलना में बहुत कम हो तो सेलों को समान्तर क्रम में जोड़ने से कोई लाभ नहीं होता है।
(ii) यदि $nr≫R$ तो $I={nE}/r$
अतः यदि सेलों का आंतरिक प्रतिरोध, बाह्य प्रतिरोध की तुलना में बहुत अधिक हो तो सेलों को समान्तर क्रम में जोड़ना चाहिए क्योंकि धारा $n$ गुनी हो जाती है।
किरचॉफ के नियम —
सन 1842 में किरचॉफ ने किसी जटिल परिपथ के विभिन्न चालकों के बीच धारा का वितरण ज्ञात करने के लिए दो नियम प्रस्तुत किए जिन्हें किरचॉफ के नियम कहते हैं।
- धारा का नियम (संधि का नियम)
- वोल्टता का नियम (पाश का नियम)
(1) पहला नियम (संधि अथवा धारा का नियम) —
“किसी विद्युत परिपथ में किसी भी संधि पर मिलने वाली समस्त धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है।” अर्थात —
Σi=0इस नियम का प्रयोग करते समय चिन्ह परिपाटी यह होती है कि संधि की ओर आने वाली धाराओं को धनात्मक तथा संधि से दूर जाने वाली धाराओं को ऋणात्मक माना जाता है।
यदि किसी संधि पर धाराएं $i_1,i_2,i_3$ संधि की ओर तथा धाराएं $i_4,i_5$ संधि से दूर जाने वाली धाराएं हों तो किरचॉफ के नियमानुसार —
$i_1+i_2+i_3-i_4-i_5=0$या $i_1+i_2+i_3=i_4+i_5$
अतः स्पष्ट है कि संधि की ओर आने वाली धाराओं का योग, संधि से दूर जाने वाली धाराओं के योग के बराबर होता है। अतः संधि पर न तो आवेश संचय होता है और न ही हटाया जाता है।
अतः किरचॉफ का पहला नियम आवेश संरक्षण को व्यक्त करता है। इस नियम को किरचॉफ का धारा नियम भी कहते हैं।
(2) दूसरा नियम (पाश अथवा वोल्टता का नियम) —
“किसी परिपथ में प्रत्येक बन्द पाश के विभिन्न खण्डों में बहने वाली धाराओं तथा संगत प्रतिरोधों के गुणनफलों का बीजगणितीय योग उस पाश में लगने वाले विद्युत वाहक बलों के बीजगणितीय योग के बराबर होता है।” अर्थात —
$ΣiR=ΣE$$i_1 R_1- i_2 R_2= E_1-E_2$
$i_2 R_2+ i_3 R_3= E_2$
$i_2 R_2+(i_1+i_2 ) R_3= E_2$
इन नियमों से परिपथ के विभिन्न भागों में प्रवाहित धाराओं को ज्ञात किया जा सकता है। किरचॉफ का दूसरा नियम ऊर्जा के संरक्षण को व्यक्त करता है। इस नियम को किरचॉफ का वोल्टता नियम भी कहते हैं।
व्हीटस्टोन सेतु —
इंग्लैंड के वैज्ञानिक व्हीटस्टोन ने प्रतिरोधों की एक ऐसी व्यवस्था का आविष्कार किया जिसके द्वारा किसी चालक के प्रतिरोध को ज्ञात किया जा सकता है। इस व्यवस्था को व्हीटस्टोन सेतु कहते हैं।
व्हीटस्टोन सेतु की संरचना —
इसमें चार प्रतिरोधों को श्रेणीक्रम में जोड़कर एक चतुर्भुज बनाते हैं। इस चतुर्भुज के एक विकर्ण में एक धारामापी व कुंजी $K_2$ तथा दूसरे विकर्ण में एक विद्युत सेल व कुंजी $K_1$ जोड़ देते हैं। अब चतुर्भुज की चारों भुजाओं के प्रतिरोधों को इस प्रकार समायोजित करते हैं कि सेल द्वारा सेतु में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर धारामापी में कोई विक्षेप ना हो। इस स्थिति में सेतु को संतुलन की अवस्था में कहा जाता है।
व्हीटस्टोन सेतु का सिद्धांत —
व्हीटस्टोन सेतु के सन्तुलन की स्थिति में “व्हीटस्टोन सेतु में किन्हीं दो भुजाओं पर लगे प्रतिरोधों का अनुपात शेष दो भुजाओं पर लगे प्रतिरोधों के अनुपात के बराबर होता है।” यही व्हीटस्टोन सेतु का सिद्धांत है।
उपपत्ति (Proof) —
चित्र में चतुर्भुज $ABCD$ की चार भुजाओं में प्रतिरोध क्रमशः $P, Q,R, S$ लगे हैं बीच में एक धारामापी $G$ लगा है और एक कुंजी $K_2$ लगी है। बिंदुओं $A$ और $C$ के बीच में एक विद्युत सेल लगा है और इसके पास एक कुंजी $K1$ लगी है।
जब कुंजी $K1$ को दबाकर सेल से धारा $i$ प्रवाहित की जाती है तो यह धारा बिन्दु $A$ पर दो भागों में बट जाती है। एक धारा $i_1 AB$ की ओर तथा दूसरा भाग $i_2 AD$ की ओर प्रवाहित होता है। प्रतिरोधों $P, Q,R, S$ को इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि कुंजी $K_2 को दबाने पर धारामापी $G$ में कोई विक्षेप ना हो।
कुंजी $K_2$ को दबाने पर भुजा $BD$ में कोई धारा नहीं होगी। अतः बंद पास $ABDA$ के लिए,
$i_1 P-i_2 R=0$$i_1 P= i_2 R,(1)$
अतः बंद पास $BCDB$ के लिए,
$i_1 Q - i_2 S=0$
$i_1 Q= i_2 S,(2)$
समी (1) को समी (2) से भाग देने पर
${i_1 P}/{i_1 Q}={i_2 R}/{i_2 S}$
$P/Q=R/S$
यही व्हीटस्टोन सेतु का सिद्धांत है।
Kirchhoff's Law and Electric Circuit : Complete Notes.
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