1 हमारे आस पास के पदार्थ | हिंदी में नोट्स | Ncert science class 9th up board chapter 1 notes in Hindi
1 हमारे आस पास के पदार्थ | हिंदी में नोट्स | Ncert science class 9th up board chapter 1 notes in Hindi
1 अध्याय विज्ञान कक्षा 9 (हमारे आसपास के पदार्थ) में हम क्या सीखेंगे?
- पदार्थ
- पदार्थ का भौतिक स्वरूप
- पदार्थ के अभिलाक्षणिक गुण
- पदार्थ की अवस्थाएं : ठोस, द्रव, गैस
- संपीड्यता
- ठोस द्रव गैस की अणुगति सिद्धांत के आधार पर व्याख्या
- ठोस द्रव व गैस की तुलना
- गलनांक
- क्वथनांक
- वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा
- पदार्थ की अवस्था परिवर्तन पर दाब परिवर्तन का प्रभाव
- वाष्पन की गुप्त ऊष्मा
- पदार्थ की अवस्था पर दाब परिवर्तन का प्रभाव
- हिमांक
- उर्ध्वपातन
- वाष्पीकरण
- वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक
- वाष्पीकरण दैनिक जीवन में उपयोग
पदार्थ –
ऐसी कोई भी वस्तु जिसका द्रव्यमान एवं आयतन होता है, पदार्थ कहलाती है। जो स्थान घेरता है तथा जिसमें द्रव्यमान होता है, पदार्थ कहलाता है।
पदार्थ का भौतिक स्वरूप –
जो स्थान घेरता है तथा जिसमें द्रव्यमान होता है, पदार्थ कहलाता है। पदार्थ बहुत छोटे-छोटे कणों से मिलकर बनते हैं जिन्हें अणु कहते हैं।
पदार्थ के अभिलाक्षणिक गुण –
पदार्थ के कानों के निम्नलिखित अभिलाक्षणिक गुण होते हैं —
- पदार्थ के कणों के बीच रिक्त स्थान होता है जिसे अंतराण्विक (अंतराणुक) अवकाश कहते हैं।
- पदार्थ के कण निरन्तर गतिशील होते हैं। ये कण विशेष प्रकार की टेढ़ी-मेढ़ी गति करते हैं, जिसे ब्राउनी गति कहते हैं।
- पदार्थ के कण एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं अर्थात इनके बीच आकर्षण बल होता है। जिसके फलस्वरुप वे एक दूसरे से बंधे रहते हैं। इस आकर्षण बल को ससंजक बल कहते हैं।
पदार्थ की अवस्थाएं –
भौतिक अवस्था के आधार पर पदार्थ को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है।
- ठोस
- द्रव
- गैस
पदार्थों की ये तीनों अवस्थाएं उसके कणों की विशेषताओं का वर्णन करती हैं।
(1) पदार्थ की ठोस अवस्था –
द्रव्य की वह अवस्था जिसमें उसका आकार एवं आयतन दोनों निश्चित होते हैं, ठोस अवस्था कहलाती है।
जैसे – लोहा, पत्थर, लकड़ी, बर्फ, ईंट इत्यादि।
ठोसों के गुण –
ठोसों के निम्नलिखित गुण होते हैं।
- ठोसों का आकार निश्चित होता है।
- ठोसों का आयतन भी निश्चित होता है।
- ठोसों की संपीड्यता (सिकुड़न) कम होती है। अतः इनको दबाया नहीं जा सकता है।
- ठोसों का घनत्व अधिक होता है।
(2) पदार्थ की द्रव अवस्था –
द्रव्य की वह अवस्था जिसमें उसका आयतन तो निश्चित होता है, लेकिन आकर निश्चित नहीं होता है, द्रव कहलाती है।
जैसे – जल, द्रव, ग्लिसरीन, तेल, पारा आदि।
द्रवों के गुण –
द्रवों में निम्नलिखित गुण होते हैं।
- द्रवों का आयतन निश्चित होता है किन्तु आकार निश्चित नहीं होता है।
- द्रवों को जिस बर्तन में रखा जाता है ये उसी का आकार ग्रहण कर लेते हैं।
- इनका घनत्व अधिक होता है लेकिन ठोसों की तुलना में कम होता है।
- द्रवों में बहने का गुण होता है। इसलिए ये दृढ़ नहीं बल्कि तरल होते हैं।
(3) पदार्थ की गैस अवस्था –
द्रव्य की वह अवस्था जिसमें न उसका आकार निश्चित होता है और न ही आयतन निश्चित होता है, गैस अवस्था कहलाती है।
जैसे अमोनिया आक्सीजन नाइट्रोजन क्लोरीन आदि।
गैसों में निम्नलिखित गुण होते हैं।
- गैसों का न तो आकार निश्चित होता है और न ही आयतन निश्चित होता है।
- गैसों को जिस बर्तन में रखा जाता है। ये उसी का आकार एवं आयतन ग्रहण कर लेते हैं।
- इनकी संपीड्यता अधिक होती है। अतः इनका ठोसों व द्रवों की तुलना में अधिक दबाया जा सकता है।
- गैसों का घनत्व बहुत कम होता है। अतः ये बहुत हल्की होती हैं।
- गैसों में तरलता का गुण पाया जाता है।
संपीड्यता की परिकल्पना –
द्रव व गैसीय पदार्थों के बीच काफी रिक्त स्थान होता है। जिसमें वायु/हवा भरी होती है। जिनसे वे दबाए जा सकते हैं। इस गुण को संपीड्यता कहते है।
ठोस द्रव तथा गैस की अणुगति सिद्धांत के आधार पर व्याख्या
ठोस की अणुगति सिद्धांत के आधार पर व्याख्या –
द्रव्य की ठोस अवस्था में अणु अत्यधिक पास-पास होते हैं तथा अणुओं के बीच आकर्षण बल भी अत्यधिक होता है। अतः अणुओं में गति करने की स्वतंत्रता नगण्य होती है। इसलिए ये अपनी गतिज ऊर्जा के कारण माध्य स्थित के इधर-उधर एक सीमित क्षेत्र में दोलन करते रहते हैं। इसीलिए ठोसों का आकार एवं आयतन दोनों ही निश्चित होते हैं।
ठोस, ताप की वृद्धि से अधिक नहीं फैलते तथा दबाने से कम दबते हैं। इसीलिए ठोस कठोर होते हैं। ठोसों का घनत्व भी अधिक होता है।
द्रव की अणुगति सिद्धांत के आधार पर व्याख्या –
द्रव के अणुओं में, ठोस अवस्था की अपेक्षा गतिज ऊर्जा अधिक होती है। जिसके फलस्वरूप अणुओं के बीच अंतराण्विक (अंतराणुक) दूरी अधिक होती है। इस दूरी के अधिक होने के कारण अणुओं का पारस्परिक आकर्षण बल भी ठोस अवस्था की तुलना में बहुत कम हो जाता है। इस कारण द्रव के अणु, द्रव की बाहरी सीमाओं के भीतर एक-दूसरे के सापेक्ष फिसल सकते हैं। अणुओं के इस गुण को तरलता कहते हैं। तरलता कारण द्रव की अपनी कोई निश्चित आकृति नहीं होती है। अतः द्रव को जिस बर्तन में रखा जाता है, वह उसी का आकार ग्रहण कर लेता है। बर्तन में द्रव का कोई भी अणु द्रव की ऊपरी सतह से बाहर नहीं आ पाता, क्योंकि जैसे ही वह गति करता हुआ ऊपरी सतह तक पहुंचता है, दूसरे अणु उसे अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। इस प्रकार द्रव का आयतन निश्चित रहता है।
गैस की अणुगति सिद्धांत के आधार पर व्याख्या –
गैस के अणुओं में ठोस एवं द्रव की अपेक्षा बहुत अधिक गतिज ऊर्जा होने के कारण उनके बीच की दूरी भी अणुओं के आकार की तुलना में बहुत अधिक होती है। इस कारण गैस में अन्तरा-आण्विक आकर्षण बल भी लगभग शून्य होता है। परिणाम स्वरूप गैस के अणु स्वतंत्र रूप से विभिन्न दिशाओं में विभिन्न चालों से अनियमित गति करते रहते हैं। अणुओं की अनियमित गति के कारण ही गैसों का आकार एवं आयतन दोनों ही निश्चित नहीं होते हैं। इसीलिए गैस को जिस बर्तन में रखा जाता है वह उसी का आकार ग्रहण कर लेती है। गैस के गतिशील अणु परस्पर तथा बर्तन की दीवार से टकराकर गैस का दबाव उत्पन्न करते हैं।
पदार्थ की अवस्था परिवर्तन पर तापमान परिवर्तन का प्रभाव –
तापमान बढ़ाने पर ठोसों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है। गतिज ऊर्जा बढ़ जाने पर ठोसों के कण अधिक तेजी से गति करने लगते हैं। ऊष्मा द्वारा दी गई ऊर्जा, कणों के बीच के आकर्षण बल को पार कर लेती है। इस कारण कण अपने नियत स्थान को छोड़कर अधिक स्वतंत्र होकर गति करने लगते हैं। इस प्रकार ठोस पिघलकर द्रव में परिवर्तित हो जाते हैं। अधिक देर तक गर्म करने पर द्रव भी गैस अवस्था में परिवर्तित होने लगते हैं। एक अवस्था ऐसी भी आती है, जब ठोस पिघलकर द्रव में परिवर्तित हो जाते हैं।
गलनांक –
वह तापमान जिस पर ठोस पिघलकर द्रव बनता है, उसका गलनांक कहलाता है।
क्वथनांक —
वायुमंडलीय दाब पर वह तापमान, जिस पर द्रव उबलने लगता है, उसका क्वथनांक कहलाता है। जल के लिए यह तापमान 100°C (100+273=373K) होता है।
वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा —
वायुमंडलीय दाब पर, 1 किलोग्राम द्रव को उसके क्वथनांक पर गैस में बदलने के लिए आवश्यक ऊष्मीय ऊर्जा, वाष्पीकरण या वाष्पन की गुप्त ऊष्मा कहलाती है।
पदार्थ की अवस्था परिवर्तन पर दाब परिवर्तन का प्रभाव —
किसी सिलेण्डर में भरी गैस पर दाब लगाने तथा सम्पीडन करने पर उसके कणों के बीच की दूरी कम हो जाती है। अतः दाब घटाने या बढ़ाने से पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन हो सकता है।
दाब के बढ़ने और तापमान के घटने से गैस द्रव में बदल जाती है। जैसे को उच्च दाब पर संग्रहीत किया जाता है, तो ठोस द्रव अवस्था में आए बिना सीधे गैस में परिवर्तित हो जाती है। अतः पदार्थ की तीनों अवस्थाएं ठोस द्रव व गैस, दाब एवं तापमान के द्वारा तय होती हैं। द्रव का ठोस में बदलना हिमीकरण या हिमांक एवं गैस का द्रव में बदलना संघनन कहलाता है।
हिमांक —
वह ताप जिस पर ठोस, द्रव में परिवर्तित होता है, वह ताप द्रव का हिमांक कहलाता है।
ऊर्ध्वपातन —
कुछ ठोस पदार्थ ऐसे होते हैं जो तेजी से गर्म करने पर द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए बिना, सीधे वाष्प अर्थात गैसीय अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं। इन पदार्थों को ऊर्ध्वपातज तथा इस क्रिया को ऊर्ध्वपातन कहते हैं।
जैसे — नौसादर, आयोडीन, कपूर आदि।
ऊर्ध्वपातज —
कुछ वस्तुओं को पुनः ठंडा करने पर प्राप्त ठोस को ऊर्ध्वपातज कहते हैं।
वाष्पीकरण —
वह घटना जिसमें कोई द्रव, बिना उबले, गैसीय अवस्था में बदल जाता है, वाष्पीकरण कहलाती है। वाष्पीकरण में कोई द्रव अपने क्वथनांक से भी कम ताप पर वाष्प में परिवर्तित हो जाता है। वाष्पीकरण एक सतही घटना है, अर्थात यह मुख्य रूप से तरल की सतह पर होती है। वाष्पीकरण के लिए, तरल को गर्मी (ऊर्जा) की आवश्यकता होती है, जो अणुओं को गतिमान करती है और उन्हें एक दूसरे से अलग होने में मदद करती है।
जैसे - जल को खुला छोड़ देने पर यह धीरे-धीरे वाष्प में परिवर्तित हो जाता है।
वाष्पीकरण की गति की निर्भरता : वाष्पीकरण की दर को प्रभावित करने वाले कारक —
वाष्पन/वाष्पीकरण की गति निम्नलिखित अवस्थाओं में अधिक होती है।
- द्रव का ताप बढ़ाने पर वाष्पीकरण की दर बढ़ती है।
- द्रव की सतह का क्षेत्रफल बढ़ाने पर वाष्पीकरण की दर बढ़ती है।
- वायु का प्रवाह तेज करने पर वाष्पीकरण की दर बढ़ती है।
- वायु में उपस्थित आद्रता पर अर्थात शुष्क वायु में वाष्पन की गति अधिक होती है।
- वाष्पन की गति द्रव की प्रकृति पर भी निर्भर करती है।
वाष्पीकरण की दर को प्रभावित करने वाले कारक —
वाष्पीकरण की दर निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है –
1 प्रष्ठीय क्षेत्रफल बढ़ाने पर —वाष्पीकरण द्रव की सतह पर होने वाली एक प्रक्रिया है। सतह का क्षेत्रफल बढ़ाने पर वाष्पीकरण की दर भी बढ़ जाती है। जैसे - कपड़े सुखाने के लिए हम उन्हें फैला देते हैं। प्रष्ठीय क्षेत्र बढ़ाने पर द्रव की सतह छोड़कर जाने वाले द्रव के अणुओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है।
2 तापमान में वृद्धि होने पर —तापमान में वृद्धि होने पर द्रव के अणुओं को पर्याप्त गतिज ऊर्जा मिलती है। जिससे वह तीव्रता से सतह को छोड़ते हैं। फलस्वरुप वाष्पन की दर बढ़ जाती है।
3 आद्रता में कमी होने पर —वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आद्रता कहते हैं। किसी निश्चित तापमान पर वातावरण की वायु में एक निश्चित मात्रा में ही जलवाष्प होती है। जब वायु में जल कणों की मात्रा, निश्चित मात्रा से अधिक होती है तो वाष्पीकरण की दर घट जाती है।
4 वायु की गति में वृद्धि होने पर —जैसा कि हम जानते हैं कि तेज वायु चलने से कपड़े जल्दी सूख जाते हैं। वायु के तेज होने से जलवाष्प के कण वायु के साथ उड़ जाते हैं। जिससे वायुमंडल की जलवाष्प की मात्रा घट जाती है एवं वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है।
वाष्पीकरण के दैनिक जीवन में अनुप्रयोग —
1 वाष्पीकरण के कारण शीतलता उत्पन्न होती है —
खुले बर्तन में रखे द्रव की सतह से निरन्तर वाष्पीकरण होता रहता है। वाष्पीकरण के दौरान द्रव के अणुओं की कम हुई ऊर्जा को पुनः प्राप्त करने के लिए, द्रव के कण अपने आस-पास के वातावरण से ऊर्जा अवशोषित कर लेते हैं। इस तरह आस-पास के वातावरण से ऊर्जा के अवशोषित होने के कारण शीतलता उत्पन्न होती है।
2 गर्मियों में हमें सूती कपड़े पहनने चाहिए —
शारीरिक प्रक्रिया के कारण गर्मियों में हमें अधिक पसीना आता है, जिससे हमें शीतलता मिलती है। इसका कारण यह है कि पसीने के जल के वाष्पीकरण के दौरान द्रव की सतह के कण हमारे शरीर अथवा आस-पास के वातावरण से ऊर्जा प्राप्त करके वाष्प में बदल जाते हैं। वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा के बराबर ऊष्मीय ऊर्जा हमारे शरीर से अवशोषित हो जाती है। जिससे शरीर शीतल हो जाता है। चूंकि सूती कपड़ों में जल का अवशोषण अधिक होता है। अतः सूती कपड़ों में पसीना अवशोषित होकर सरलता से अधिक वाष्पीकृत होगा और हमारे शरीर को अधिक शीतलता प्राप्त होगी। अतः गर्मियों में हमें सूती कपड़े पहनने चाहिए।
3 बर्फीले जल से भरी गिलास की बाहरी सतह पर जल की ब क्यों नजर आती हैं —
जब हम गिलास में बर्फीला जल लेते हैं तो बर्तन की बाहरी सतह पर हमें जल की बूंदे दिखाई देने लगती हैं। इसका कारण यह है कि वायु में उपस्थित जलवाष्प की ऊर्जा ठंडे जल के संपर्क में आकर कम हो जाती है और यह द्रव अवस्था में बदल जाती है। जो हमें जल की बूंदों के रूप में दिखाई देती है।
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