4 परमाणु की संरचना | हिंदी में नोट्स | Ncert science class 9th UP board chapter 4 notes in Hindi.

4 परमाणु की संरचना | हिंदी में नोट्स | Ncert science class 9th UP board chapter 4 notes in Hindi.

3 अध्याय विज्ञान कक्षा 9 (परमाणु एवं अणु) में हम क्या सीखेंगे?

  • आधुनिक परमाणु सिध्दान्त
  • पदार्थों में आवेशित कण
  • परमाणु की संरचना
  • कैथोड किरणें : गुण 
  • इलेक्ट्रॉन की विशेषताएं
  • एनोड किरणें : गुण
  • परमाणु मॉडल 
  • थॉमसन मॉडल 
  • दरफोर्ड का परमाणु मॉडल ! कमियां
  • बोहर का परमाणु मॉडल : कमियां
  • न्यूट्रॉन की खाज
  • इलेक्ट्रोनिक विन्यास
  • बोहर-बरी नियम
  • संयोजकता ! फैंकलैंड का सिध्दान्त
  • अष्टक नियम
  • परमाणु संख्या एवं द्रव्यमान संख्या
  • समस्थानिक
  • समभारिक ! 
  • समस्थानिक तथा समभारिक अन्तर - 

आधुनिक परमाणु सिद्धांत —

  1. परमाणु अविभाज्य कण नहीं है अपितु यह इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन से निर्मित होता है तथा उसमें वह विभाजित भी हो सकता है। 
  2. एक ही तत्व के परमाणु भार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। ऐसे परमाणुओं को समस्थानिक कहते हैं। जैसे- हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक प्रोटियम, ड्यूटीरियम, तथा ट्राईटियम होते हैं। इनकी परमाणु संख्या 1 तथा परमाणु भार क्रमशः 1, 2, 3 होते हैं। 
  3. भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणु भार एकसमान भी हो सकते हैं ऐसे परमाणुओं को संभारिक कहते हैं। जैसे- आर्गन तथा कैल्सियम तत्वों का परमाणु भार 40 है। 
  4. परमाणु सरल अनुपात में संयुक्त होकर योग बनते हैं, परंतु यौगिक को बनाने में तत्वों के परमाणुओं का सरल गुणित अनुपात में होना आवश्यक नहीं है। 
  5. तत्व का मूल लक्षण परमाणु भार होता है परंतु आधुनिक परमाणु सिद्धांत के अनुसार “परमाणु क्रमांक” है। 
  6. तत्वों के परमाणु संयुक्त होकर अणु बनाते हैं न की यौगिक परमाणु। 
  7. यद्यपि परमाणुओं को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है तथापि नाभिकीय विखंडन द्वारा भारी तत्वों के परमाणुओं को हल्के तत्व के परमाणुओं में परिवर्तित किया जा सकता है। 

पदार्थ में अवशोषित कण -

जब किन्हीं दो वस्तुओं को आपस में रगड़ा जाता है तो उनमें विद्युत आवेश आ जाता है। उनमें से एक वस्तु धन आवेशित तथा दूसरी वस्तु ऋणावेशित हो जाती है। 19वीं शताब्दी के अन्त में जेजे थॉमसन ने पता लगाया कि परमाणु साधारण तथा अविभाज्य कण नहीं है बल्कि इसमें कम से कम एक अवरमाणुक कण इलेक्ट्रॉन उपस्थित होता है। इलेक्ट्रॉन पर -1 आवेश होता है। इसे e^- से प्रदर्शित किया जाता है तथा इसका द्रव्यमान नगण्य होता है। इलेक्ट्रॉन से पहले गोल्डस्टीन ने एक नई विकिरण की खोज की जिसे कैनाल रे नाम दिया गया। इनके द्वारा दूसरे अवरमाणुक कणों की खोज हुई। जिसे प्रोटॉन नाम दिया गया। प्रोटॉन को p^+ से प्रदर्शित किया जाता है। प्रोटॉन पर +1 आवेश होता है तथा 1 इकाई द्रव्यमान होता है।

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परमाणु की संरचना : थॉमसन प्रयोग (इलेक्ट्रॉन की खोज) – -

इलेक्ट्रॉन की खोज जेजे थॉमसन ने की। उन्होंने गैस को कांच की एक विसर्जन नली में न्यूनतम दाब 0.01mm से 0.001mm पर भरकर उसमें उच्च विभव 10000 से 30000 वोल्ट की विद्युत धारा प्रवाहित की। उन्होंने देखा की विसर्जन नली के कैथोड से एक प्रकार की अदृश्य किरण निकलती हैं जो हरे रंग की प्रतिदीप्ति उत्पन्न करती हैं। इन अदृश्य किरणों को ही कैथोड किरणें कहा गया।

कैथोड किरणों के गुण -

कैथोड किरणें निम्नलिखित गुण प्रदर्शित करती हैं:

  1. कैथोड किरणें सीधी रेखा में चलती हैं। कैथोड किरणें अपने मार्ग में रखी अपारदर्शी वस्तु की छाया कैथोड के सामने वाली दीवार पर उत्पन्न करती हैं। 
  2. कैथोड किरणों में द्रव्यमान व वेग होता है। यदि कैथोड किरणों के मार्ग में एक हल्के पैडल व्हील को रख देते हैं तो कैथोड किरणें पैडल व्हील को घुमा देती हैं। 
  3. कैथोड किरणें ऋण आवेशित कणों से बनी होती हैं। जब कैथोड किरणें विद्युत व चुंबकीय क्षेत्र में विक्षेपित होती हैं। तब ये किरणें धन आवेशित प्लेट (एनोड) की ओर विक्षेपित हो जाती हैं। अतः हम कह सकते हैं कि कैथोड किरणों के कण ऋण आवेशित होते हैं। 
  4. ये किरणें विसर्जन नली में संघट्ट के दौरान हरे रंग की कैथोड प्रतिदीप्ति उत्पन्न करती हैं। 
  5. कैथोड किरणें गैसों को आयनित कर देती हैं। 
  6. कैथोड किरणें उच्च गलनांक की धातु से टकराने से X किरणें उत्पन्न करती हैं। 
  7. कैथोड किरणों की गतिज ऊर्जा अति तीव्र होती है। 
  8. कैथोड किरणें फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करती हैं। 

थॉमसन के प्रयोग : निष्कर्ष -

  1. कैथोड किरणें अति सूक्ष्म कणों से मिलकर बनी होती हैं। 
  2. कैथोड किरणें ऋण आवेशित होती हैं। 
  3. कैथोड किरणें अतिसूक्ष्म कणों से मिलकर बनी होती हैं। इन अतिसूक्ष्म कणों को इलेक्ट्रॉन कहते हैं। इलेक्ट्रॉन सभी तत्वों के परमाणुओं में पाया जाने वाला ऋण आवेशित कण है। इलेक्ट्रॉन परमाणु के नाभिक के बाहर स्थित होते हैं। इलेक्ट्रॉन को e^- से प्रदर्शित करते हैं। 

इलेक्ट्रॉन की विशेषताएं -

  1. इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान 9.1×10^(-28) ग्राम होता है। 
  2. इलेक्ट्रॉन का आवेश 1.6×10^(-19) कूलाम होता है। 
  3. इलेक्ट्रॉन सभी परमाणुओं का मौलिक कण है। 
  4. इलेक्ट्रॉन की त्रिज्या लगभग 1.8×10^(-13) सेंटीमीटर होती है। 
  5. परमाणु की बाह्य कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉन तत्व के गुण तथा रासायनिक संयोग को निर्धारित करते हैं। 

इलेक्ट्रॉन की परिभाषा –

इलेक्ट्रॉन सभी परमाणुओं में उपस्थित वह सूक्ष्मतम मूल कण है जिस पर 1 इकाई ऋणावेश होता है तथा द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान का लगभग 1/1837 भाग के बराबर होता है।

गोल्डस्टीन का प्रयोग : प्रोटॉन की खोज -

प्रोटॉन की खोज गोल्डस्टीन ने 1886 में अप्रत्यक्ष रूप से की। उन्होंने एक विसर्जन नली में छिद्र युक्त कैथोड प्रयुक्त करके अपने प्रयोग में दर्शाया कि गैसों में अल्प दाब पर उच्च विभव की विद्युत धारा प्रवाहित करने पर कैथोड के पीछे कांच की दीवार पर एक प्रतिदीप्ति उत्पन्न होती है। गोल्डस्टीन ने इन करने को कैनाल किरणें कहा। 1897 में W वेन ने इन्हें धन आवेशित कणों से मिलकर बना हुआ सिद्ध किया। जेजे थॉमसन 1897 में इन्हें धन किरणे कहा। बाद में रदरफोर्ड ने इन कणों को प्रोटॉन नाम दिया।

धन किरणों (एनोड किरणों) के गुण -

  1. धन किरणें सीधी रेखा में चलती हैं। 
  2. धन किरणें अपने मार्ग में रखे हल्के पैडल व्हील को घुमा देती हैं। जिससे सिद्ध होता है कि धन किरणें द्रव्य कणों से बनी होती हैं। 
  3. धन किरणें विद्युत क्षेत्र में ऋण प्लेट की ओर विक्षेपित हो जाती हैं। जिससे सिद्ध होता है कि धन किरणों पर धन आवेश होता है। 
  4. धन किरणों से बने धन आवेशित कणों का द्रव्यमान गैस की प्रकृति पर निर्भर करता है तथा गैस के परमाणुओं के द्रव्यमान के बराबर होता है। 
  5. धन किरणें धातु की पतली पन्नी को भेद कर आरपार गुजर जाती हैं। उनकी वेधन क्षमता कैथोड किरणों से कम होती है। 
  6. धन किरणें प्रतिदीप्ति तथा इस स्फुरदीप्ति उत्पन्न कर सकती हैं।
  7. धन किरणें फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करती हैं। 
  8. धन किरणों में उपस्थित धन आवेशित कण “आवेश/द्रव्यमान” के अनुपात को निर्धारित करती हैं। 

प्रोटॉन की खोज :–

प्रोटॉन की खोज रदरफोर्ड ने सन 1919 में की। उन्होंने तीव्रगामी अल्फा कणों की बमबारी नाइट्रोजन पर की जिससे प्रोटॉन की प्राप्ति हुई। उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि सभी तत्वों के परमाणुओं के नाभिक में प्रोटॉन उपस्थित होते हैं। प्रोटॉन को $P^+$ या $1H^1$ से प्रदर्शित करते हैं।

प्रोटॉन की विशेषताएं :–

प्रोटॉन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  1. प्रोटॉन किसी परमाणु का धनावेशित मूल कण है।
  2. प्रोटॉन का द्रव्यमान हाइड्रोजन के एक परमाणु के द्रव्यमान के लगभग बराबर होता है। जो $1.672×10^{-24}$ g होता है।
  3. प्रोटॉन धनावेशित होता है यह परमाणु के नाभिक में पाया जाता है।
  4. प्रोटॉन पर इलेक्ट्रॉन के बराबर विपरीत प्रकृति का आवेश $1.6×10^{-19}$ कूलाम होता है।
  5. भिन्न-भिन्न गैसों से प्राप्त धन किरणों में हाइड्रोजन गैस से प्राप्त धन किरणों के लिए आवेश तथा द्रव्यमान का अनुपात $(e/m)$ सर्वाधिक होता है।

निष्कर्ष :–

परमाणु का वह छोटे से छोटा कण जिस पर इकाई धन आवेश पाया जाता है और जिसका द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान के लगभग बराबर होता है, प्रोटॉन कहलाता है।

आधुनिक परमाणु मॉडल :–

आधुनिक खोजों के आधार पर यह स्पष्ट हो चुका है कि परमाणु विभाज्य कण है। जो विभिन्न प्रकार के अतिसूक्ष्म कणों से मिलकर बना है। जिनको मूल कण या स्थाई कण कहते हैं। इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन परमाणु संरचना के स्थाई कण हैं। भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणुओं में इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन की संख्या भी भिन्न-भिन्न होती है। जिसके कारण उनके तत्वों के गुणों में भी भिन्नता पाई जाती है।

थॉमसन का परमाणु :–

मॉडल थॉमसन की परमाणु मॉडल की निम्नलिखित परिकल्पनाएं थी।

  1. परमाणु धनावेशित गोले का बना होता है जिसमें ऋणात्मक आवेश वाले इलेक्ट्रॉन धंसे रहते हैं।
  2. परमाणु में धनात्मक और ऋणात्मक आवेश परिमाण में समान होते हैं।
  3. यह $10^{-10}$ मीटर त्रिज्या का एक धन आवेशित गोला होता है। जिसमें जगह-जगह पर इलेक्ट्रॉन धंसे होते हैं। इस मॉडल को परमाणु का तरबूज माडल या प्लम पुडिंग मॉडल भी कहते हैं। क्योंकि इसका स्वरूप तरबूज के समान माना जाता है। परमाणु का धनावेश खाए जाने वाले लाल भाग की भांति फैला हुआ है। जबकि इलेक्ट्रॉन उसमें तरबूज के बीज के समान धंसे रहते हैं।

थॉमसन के परमाणु मॉडल की कमियां :–

थॉमसन का परमाणु मॉडल अल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग तथा परमाणु के स्पेक्ट्रम की सही व्याख्या करने में असफल रहा।

परमाणु का रदरफोर्ड मॉडल : अल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग –

1911 में रदरफोर्ड ने अपने अल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग के आधार पर परमाणु की संरचना की एक नई कल्पना प्रस्तुत की। इसमें उन्होंने नाभिक के अस्तित्व पर विचार किया। 1919 में रदरफोर्ड ने स्वर्ण की बारीक पन्नी पर अल्फा कणों की बौछार की। उन्होंने देखा कि अधिकांश अल्फा कण स्वर्ण की बारीक पन्नी से टकराकर बिना मुड़े ही सीधे आगे निकल जाते हैं। कुछ अल्फा कण अपने मार्ग से विक्षेपित हो जाते हैं और बहुत कम अल्फा कण पन्नी से प्रतिकर्षित होकर वापस लौट जाते हैं।

निष्कर्ष :–

अल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग के आधार पर रदरफोर्ड ने निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले।

  1. चूंकि अधिकांश अल्फा कण लगभग 99.9% बिना विक्षेपित हुए स्वर्ण पन्नी से होकर आर-पार सीधे निकल जाते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि परमाणु का अधिकांश भाग खाली अर्थात रिक्त होता है।
  2. कुछ अल्फा कण अपने मार्ग से विभिन्न कोणों पर विक्षेपित हो जाते हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि परमाणु के केंद्र में धन आवेशित भाग होता है।
  3. बहुत कम अल्फा कण अपने ही मार्ग में वापस लौट आते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि परमाणु के केंद्र में एक भारी कणों की उपस्थिति होती है जिसे नाभिक कहते हैं।

रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की सफलताएं –

रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की निम्नलिखित सफलताएं थीं:

  1. परमाणु का समस्त धन आवेश तथा लगभग समस्त द्रव्यमान उसके केंद्र पर स्थित होता है। जिसे नाभिक कहते हैं। 
  2. परमाणु विद्युत उदासीन होता है। अतः इसमें इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन समान मात्रा में होते हैं। 
  3. परमाणु का अधिकांश भाग रिक्त होता है तथा परमाणु के चारों ओर निश्चित वृताकार कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते रहते हैं। इन कक्षाओं को ऑर्बिट कहते हैं। 
  4. नाभिक का आयतन परमाणु के कुल आयतन की तुलना में नगण्य है। परमाणु की त्रिज्या लगभग $10^{-10} m$ की तथा नाभिक की त्रिज्या $10^{-15} m$ मीटर होती है। 
  5. इलेक्ट्रॉन तथा नाभिक आपस में स्थिर विद्युत आकर्षण बलों द्वारा बंधे रहते हैं।

रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की कमियां :–

रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की निम्नलिखित कमियां हैं:

  1. मैक्सवेल के विद्युत गतिकी सिद्धांत के अनुसार जब कोई आवेशित कण त्वरित गति में होता है तो उससे विकिरण के रूप में ऊर्जा की हानि होती है। जबकि रदरफोर्ड के अनुसार इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार पथ (कक्षाओं) में गति करते हैं। अतः उनकी गति त्वरित गति होती है। इस प्रकार इलेक्ट्रॉन अपनी ऊर्जा का उत्सर्जन विकिरण के रूप में करते हैं। अतः इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा तथा गति धीरे-धीरे कम होती जाएगी और अंततः इलेक्ट्रॉन नाभिक में गिर जाएंगे। इस प्रकार रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल नाभिक के स्थायित्व की व्याख्या नहीं कर सका। 
  2. रदरफोर्ड के मॉडल से यह ज्ञात नहीं हो सका की इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर किस प्रकार विद्यमान हैं और उनकी ऊर्जा क्या है? 
  3. रदरफोर्ड की संरचना के अनुसार परमाणु स्पेक्ट्रम सतत होना चाहिए परंतु वास्तव में परमाणु का स्पेक्ट्रम सतत नहीं होता है। इसके स्पेक्ट्रम में निश्चित आवृत्ति की कई रेखाएं होती हैं। अतः रदरफोर्ड मॉडल परमाणुओं के रैखिक स्पेक्ट्रम की व्याख्या करने में असफल रहा।

बोहर का परमाणु मॉडल :–

  1. इस मॉडल के अनुसार परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृत्तीय कक्षाओं में घूमते रहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक कक्षा की ऊर्जा की मात्रा निश्चित होता है। इन्हें कक्षा या ऊर्जा स्तर या ऊर्जा कोष कहते हैं। इन ऊर्जा कोषों को $J, K, L, M$ अथवा $1, 2, 3, 4$ द्वारा व्यक्त करते हैं। 
  2. इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर केवल उन्हीं कक्षाओं में घूम सकते हैं। जिनके लिए उनका कोणीय संवेग $h/{2π}$ का पूर्ण गुणज हो। कोणीय संवेग $mvr={nh}/{2π} ,eq(1)$
    $n=1,2,3,4,…$
    इस समीकरण को बोहर का क्वांटमीकरण समीकरण कहते हैं। 
  3. स्थाई कक्षा में घूमते समय इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं करते जिससे परमाणु का स्थायित्व बना रहता है। 
  4. प्रत्येक ऊर्जा स्तर की ऊर्जा निश्चित होती है। नाभिक से सबसे दूर वाले कोष की ऊर्जा सबसे अधिक तथा नाभिक के सबसे पास वाले कोष की ऊर्जा सबसे कम होती है। 
  5. जब परमाणु अपनी कक्षा में घूमते रहते हैं तो उनकी ऊर्जा में किसी भी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं होता है। यदि किसी कारण परमाणु को बाहर से उचित ऊर्जा मिल जाए तो उसका कोई इलेक्ट्रॉन अपनी निश्चित कक्षा को छोड़कर किसी उच्च कक्षा में चला जाता है। यह इलेक्ट्रॉन केवल $10^{-8}$ सेकंड तक वहां रुककर पुन अपनी कक्षा में वापस आ जाता है। वापस आते समय दोनों कक्षाओं की ऊर्जा के अंतर के बराबर विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में ऊर्जा उत्सर्जित या अवशोषित कर देता है। निम्न कक्षा में वापस आते समय इलेक्ट्रॉन द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा
    $∆E=E_2-E_1$
    यदि उत्सर्जित तरंग की आवृत्ति हो $ν$ तो–
    $E_2-E_1=hν $
    $ν={E_2-E_1}/h$
    यह बोहर का आवृत्ति प्रतिबंध है।

बोहर के परमाणु मॉडल की कमियां :–

बोहर के परमाणु मॉडल की निम्नलिखित कमियां है:

  1. बोहर के मॉडल द्वारा एक इलेक्ट्रॉन वाले परमाणु अथवा आयनों के स्पेक्ट्रम की उत्पत्ति व इसकी व्याख्या करने में सफलता प्राप्त हुई। परंतु बहु इलेक्ट्रॉन वाले परमाणुओं या आयनों के स्पेक्ट्रम की व्याख्या करने में यह असफल रहा। 
  2. प्रयोग द्वारा देखा गया कि जिस वस्तु से विकिरण का उत्सर्जन हो रहा है। उसे चुंबकीय क्षेत्र में रख देने पर चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव से स्पेक्ट्रम रेखाएं विभाजित हो जाती हैं। इस प्रकार स्पेक्ट्रम रेखाओं के विघटन को जीवन प्रभाव कहते हैं। बोहर के मॉडल से इसकी व्याख्या नहीं की जा सकी।

चैडविक का प्रयोग न्यूट्रॉन की खोज :–

न्यूट्रॉन की खोज सन 1932 में जेम्स चैडविक ने की। उन्होंने देखा कि जब बेरिलियम की पतली पन्नी पर अल्फा कणों की बौछार की गई तो कुछ किरणें उत्सर्जित हुई। जो एक नए प्रकार के कणों से मिलकर बनी थी। इनका द्रव्यमान तो था। परंतु इन पर कोई आवेश नहीं था। कोई आवेश न होने के कारण इन्हें विद्युत उदासीन कान कहा गया और इनका नाम न्यूट्रॉन रखा गया। इनका द्रव्यमान प्रोट्रॉन के लगभग बराबर होता है।
$4Be^9+ 2He^4→ 6C^12+ 0n^1 $

न्यूट्रॉन की परिभाषा —

“परमाणु का वह सूक्ष्मतम कण जो विद्युत रूप से उदासीन हो तथा जिसका द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के लगभग बराबर हो, न्यूट्रॉन कहलाता है।”

न्यूट्रॉन की विशेषताएं —

न्यूट्रॉन की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं:

  1. न्यूट्रॉन किसी परमाणु का वह मूल कण है जिस पर कोई आवेश नहीं होता है। 
  2. इसे प्रायः $n$ से तथा नाभिकीय अभिक्रियाओं में $0n^1$ से प्रदर्शित करते हैं। 
  3. न्यूट्रॉन की त्रिज्या लगभग $10^{-13}$  cm होती है। 
  4. न्यूट्रॉन पर कोई आवेश न होने के कारण इसका $e∕m$ अनुपात का मान शून्य होता है। 
  5. किसी परमाणु के आयन में परिवर्तन करने पर उसमें न्यूट्रॉन की संख्या नहीं बदलती है। 
  6. तत्वों के परमाणु के भौतिक गुण उसके नाभिक में उपस्थित न्यूट्रॉनों की संख्याओं पर निर्भर करते हैं। 

विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों का वितरण : इलेक्ट्रॉनिक विन्यास —

“किसी तत्व के परमाणुओं की विभिन्न कक्षाओं (कोशों) में इलेक्ट्रॉनों के वितरण को उस तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास कहते हैं।”

बोर-बरी नियम —

बोर तथा बरी ने परमाणुओं की कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों के वितरण संबंधी कुछ नियम प्रस्तुत किए। जिन्हें बोर-बरी नियम कहते हैं। ये निम्नलिखित हैं:

  1. परमाणु की किसी कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या $2n²$ होती है। जहां $n$ उस कक्षा की संख्या है। $n=1,2,3,4$ हो सकता है। 
  2. परमाणु की सबसे बाहरी कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 8 हो सकती है तथा अधिकतम 18 इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं। 
  3. यह आवश्यक नहीं है कि नियम (1) के अनुसार किसी कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की संख्या पूर्ण होने पर ही उसके आगे वाली कक्षा में इलेक्ट्रॉन भरें। अपितु जब बाह्यतम कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन हो जाते हैं तो नई कक्षा में इलेक्ट्रॉन भरने शुरू हो जाते हैं। 
  4. जैसे— कैल्शियम का परमाणु क्रमांक 20 है। अतः इसमें 20 इलेक्ट्रॉन होते हैं। पहली कक्षा में 2 इलेक्ट्रॉन होंगे। दूसरी कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन तीसरी कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन हो जाने पर चौथी कक्षा खुल जाती है। हालांकि तीसरी कक्षा में 18 इलेक्ट्रॉन आ सकते हैं। अतः कैल्शियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास $2,8,8,2$ होता है न की $2,8,10$. सबसे बाहरी कक्षा में 2 से अधिक और इससे पहले वाली कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉनों से अधिक इलेक्ट्रॉन तब तक नहीं हो सकते हैं। जब तक कि बाहर से तीसरी कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की संख्या $2n^2$ नियम अनुसार अधिकतम ना हो जाए।

तत्वों की परमाणु संरचनाएं —

किसी तत्व की परमाणु संरचना उसकी द्रव्यमान संख्या तथा परमाणु क्रमांक ज्ञात होने पर प्रदर्शित की जाती है। परमाणु संरचना में प्रोटॉनों एवं न्यूट्रॉनों की संख्या को केंद्रीय नाभिक में लिखते हैं तथा इलेक्ट्रॉनों की संख्या को उसके चारों ओर कक्षाओं के अनुरूप दर्शाते हैं।

संयोजकता —

किसी तत्व या मूलक की संयोजकता उसके परमाणुओं की रासायनिक संयोजन क्षमता को प्रदर्शित करती है। चूंकि तत्वों का संयोजन इलेक्ट्रॉन के साझे या स्थानांतरण द्वारा होता है। अतः किसी तत्व के द्वारा ग्रहण किए गए या त्यागे गए इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या को उस तत्व की संयोजकता कहते हैं।

“अतः कोई भी परमाणु अष्टक पूर्ण करने के लिए जितने इलेक्ट्रॉनों का आदान-प्रदान या साझा करता है। उसे उसकी संयोजकता कहते हैं।”

जैसे— क्लोरीन $Cl^17$ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास $2,8,7$ है। इसके निकटतम उत्कृष्ट गैस ऑर्गन है। जिसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास $2,8,8$ है। अतः स्थाई संरचना प्राप्त करने के लिए क्लोरीन का एक परमाणु किसी अन्य परमाणु से 1 इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर लेता है। अतः इसकी संयोजकता 1 है।

संयोजकता संबंधी फ्रैंकलैंड का सिद्धांत —

“किसी तत्व की संयोजकता हाइड्रोजन परमाणु की वह संख्या है, जो उसे तत्व के एक परमाणु से संयोग करती है।”

फ्रैंकलैंड के सिद्धांत में कमियां —

संयोजकता की परिभाषा के अनुसार हाइड्रोजन क्लोराइड $(HCl)$ में क्लोरीन $(Cl)$ की संयोजकता 1, जल $(H_2 O)$ में ऑक्सीजन $(O)$ की संयोजकता 2, वह अमोनियम $(NH_3 )$ में नाइट्रोजन $(N)$ की संयोजकता 3 है, किंतु मेथेन $(CH_4 )$ में कार्बन की संयोजकता 4, एथेन $(C_2 H_6 )$ में कार्बन की संयोजकता 3, एथिलीन $(C_2 H_4 )$ में कार्बन की संयोजकता 2, वह एसिटिलीन $(C_2 H_2 )$ में कार्बन की संयोजकता 1 होगी। क्योंकि यह कार्बन की विभिन्न संयोजकताओं को स्पष्ट नहीं कर सका। अतः इस सिद्धांत का खंडन कर दिया गया।

नोट — 1 संयोजकता वाले तत्वों या मूलकों एकसंयोजक, 2 संयोजकता वाले तत्वों को द्विसंयोजक, 3 संयोजकता वाले तत्वों को त्रिसंयोजक, 4 संयोजकता वाले तत्वों को चतुसंयोजक तथा 5 संयोजकता वाले तत्व या मूलकों को पंचसंयोजक कहते हैं।

संयोजकता का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धांत —

सन 1916 में कोशेल तथा लुइस ने तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर इलेक्ट्रॉनों की वितरण संबंधी संयोजकता का एक सिद्धांत प्रस्तुत किया। जिसे संयोजकता का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धांत कहते हैं। इसके अनुसार —

  1. किसी तत्व की संयोजकता उस तत्व के परमाणु की अंतिम कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करती है। अतः इन इलेक्ट्रॉनों को संयोजक इलेक्ट्रॉन तथा बाह्य कोश को संयोजी कोश कहते हैं।
  2. अक्रिय कैसे लगभग निष्क्रिय होती हैं क्योंकि इनके बाह्यतम कोश में आठ इलेक्ट्रॉन होते हैं (हीलियम को छोड़कर)। जिसकी बाह्यतम कोश में दो इलेक्ट्रॉन होते हैं। यह एक स्थाई विन्यास है।

परमाणु संख्या तथा द्रव्यमान संख्या

परमाणु संख्या —

“किसी तत्व के एक परमाणु में प्रोटॉन की संख्या उसे तत्व की परमाणु संख्या कहलाती है।”

अथवा “किसी तत्व की परमाणु संख्या उस तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होती है।” किसी तत्व की प्रमाण संख्या को $Z$ से प्रदर्शित करते हैं। अर्थात —

किसी तत्व की परमाणु संख्या = तत्व के एक परमाणु में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या।

द्रव्यमान संख्या —

“किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित न्यूट्रॉनों एवं प्रोटॉनों की संख्या का योग उस तत्व की द्रव्यमान संख्या कहलाती है। इसे $A$ से प्रदर्शित करते हैं।

द्रव्यमान संख्या $(A)$ = प्रोटॉनों की संख्या $(Z)$ + न्यूट्रॉनों की संख्या $(n)$
$A=Z+n$

परमाणु क्रमांक तथा द्रव्यमान संख्या में संबंध —

किसी परमाणु का परमाणु क्रमांक $(Z)$, उस परमाणु के नाभिक में प्रोटॉनों की कुल संख्या के बराबर होता है तथा प्रमाण की द्रव्यमान संख्या $(A)$ परमाणु नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों की कुल संख्या के योग के बराबर होती है।

$Z=P$
$A=P+n$
$A=Z+n$
$n=A-Z$

समस्थानिक —

“एक ही तत्व के परमाणु जिनकी परमाणु संख्या तो समान होती है परंतु द्रव्यमान संख्या भिन्न-भिन्न होती है, समस्थानिक कहलाते हैं।”

समस्थानिकों में प्रत्येक प्रमाण में प्रोटॉन की संख्या तो समान होती है परंतु न्यूट्रॉन की संख्या भिन्न-भिन्न होती है इसीलिए समस्थानिकों में परमाणु संख्या तो सामान रहती है परंतु द्रव्यमान संख्या भिन्न-भिन्न होती है।

जैसे हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक $1H^1,1H^2,1H^3$ होते हैं। कार्बन के दो समस्थानिक $6C^12,6C^14$ होते हैं। ऑक्सीजन के तीन समस्थानिक $8O^16,8O^17,8O^18$ होते हैं।

NOTE —

समस्थानिकों के द्रव्यमानों में भिन्नता उसके नाभिक में न्यूट्रॉनों की भिन्न-भिन्न संख्याओं के कारण होती है।

समस्थानिकों की विशेषताएं —

समस्थानिकों की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं:

  1. एक तत्व के समस्थानिकों की परमाणु संख्या समान होती हैं। इसीलिए प्रोटानों और इलेक्ट्रॉनों की संख्या भी समान होती हैं।
  2. एक तत्व के समस्थानिकों की द्रव्यमान संख्या भिन्न-भिन्न होती हैं। इसीलिए नाभिक में उपस्थित न्यूट्रॉन की संख्या भी भिन्न-भिन्न होती है।
  3. समस्थानिकों के भौतिक गुण भिन्न-भिन्न होते हैं क्योंकि एक तत्व के सभी समस्थानिकों की द्रव्यमान संख्याएं भिन्न-भिन्न होती हैं।
  4. एक तत्व के समस्थानिकों में कुछ रेडियोएक्टिव हो सकते हैं। इसका मुख्य कारण नाभिकीय संरचना का भिन्न-भिन्न होना है।
  5. एक तत्व के सभी समस्थानिकों का परमाणु क्रमांक समान होता है। अतः एक तत्व के सभी समस्थानिकों को आवर्त सारणी में एक ही स्थान पर रखा जाता है।

समस्थानिकों के अनुप्रयोग —

  1. नाभिकीय रिएक्टर में यूरेनियम-235 का एक समस्थानिक नाभिकीय ईंधन के रूप में प्रयुक्त होता है।
  2. आयोडीन-131 समस्थानिक का उपयोग घेंघा रोग के इलाज में होता है।
  3. फास्फोरस-32 समस्थानिक का उपयोग ल्यूकेमिका (ब्लड कैंसर) के इलाज में होता है।
  4. कार्बन-14 समस्थानिक का उपयोग जीवाश्म की आयु सीमा ज्ञात करने में किया जाता है।
  5. समस्थानिकों का उपयोग भूमिगत तेल पाइपों गैस पाइपों हो या जल पाइपों के लीकेज ज्ञात करने में किया जाता है।

समभारिक —

ऐसे तत्व जिनकी द्रव्यमान संख्याएं तो समान होती हैं परंतु उनकी परमाणु संख्याएं भिन्न-भिन्न होती हैं, समभारिक कहलाते हैं।

जैसे — आर्गन $(Ar)$ की परमाणु संख्या 18 तथा कैल्सियम $(Ca)$ की परमाणु संख्या 20 है। दोनों के परमाणुओं की द्रव्यमान संख्या 40 है। अतः $(18Ar^40 )$ तथा $(20Ca^40 )$ समभारिक हैं।

समभारिकों की विशेषताएं —

समभारिकों में निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं:

  1. समभारिकों की परमाणु संख्या भिन्न-भिन्न होती है।
  2. समभारिकों की द्रव्यमान संख्या बराबर होती है।
  3. समभारिक भिन्न-भिन्न रासायनिक गुणों तथा भौतिक गुणों से युक्त होते हैं।
  4. समभारिकों में प्रोटॉन इलेक्ट्रॉन व न्यूट्रॉन की संख्या भिन्न-भिन्न होती है।
  5. समभारिकों का आवर्त सारणी में स्थान भिन्न-भिन्न होता है।

समस्थानिक तथा समभारिक में अंतर —

समभारिक तथा समस्थानिक तथा समभारिक में निम्नलिखित अंतर होते हैं:

  1. समभारिकों की परमाणु संख्या समान परंतु परमाणु भार भिन्न-भिन्न होता है।
  2. उनके रासायनिक गुण लगभग समान होते हैं।
  3. इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है।
  4. इनके नाभिकों में प्रोटॉनों की संख्या समान होती है परंतु न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है। जैसे — $1H^1,1H^2,1H^3$
  1. समभारिक परमाणुओं की परमाणु संख्या भिन्न-भिन्न परंतु परमाणु भार समान होता है।
  2. रासायनिक गुण बिल्कुल भिन्न होते हैं।
  3. इलेक्ट्रॉनों की संख्या असमान होती हैं।
  4. इनके नाभिक में प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों दोनों की ही संख्या भिन्न-भिन्न होती है। जैसे —$18Ar^40,19K^40,20Ca^40$.

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