8 बल तथा गति के नियम | हिंदी में नोट्स | Ncert science class 9th up board chapter 8 notes in Hindi

अध्याय 8 विज्ञान कक्षा 9 बल तथा गति के नियम NCERT साइंस नोट्स | Class 9th science chapter 8 notes in Hindi for UP board.

Book NCERT
Class 9th
Subject Science
Chapter 8
Chapter Name बल तथा न्यूटन के नियम
Catagory Class 9 science notes in hindi
Medium Hindi (UP Board)

अध्याय 8 विज्ञान कक्षा 9 (बल तथा न्यूटन के नियम) में हम क्या सीखेंगे?

  • बल (Force)
  • बल के प्रभाव (Effects of Force)
  • बल के प्रकार
  • (1) सन्तुलित बल (Balanced Force)
  • (2) असन्तुलित बल (Unbalanced Force)
  • सन्तुलित तथा असन्तुलित बल में अन्तर
  • स्पर्शीय तथा अस्पर्शीय बल
  • स्पर्शीय बल
  • अस्पर्शीय बल
  • बलों का वर्गीकरण
  • (1) पेशीय बल 
  • (2) यांत्रिक बल
  • (3) गुरुत्वाकर्षण बल 
  • (4) घर्षण बल
  • (5) चुम्बकीय बल
  • (6) विद्युत बल 
  • जड़त्व और द्रव्यमान
  • जड़त्व के प्रकार
  • (1) विराम का जड़त्व 
  • (2) गति का जड़त्व
  • (3) दिशा का जड़त्व 
  • संवेग और आवेग
  • न्यूटन के गति के नियम
  • (1) न्यूटन की गति का प्रथम नियम : जड़त्व का नियम 
  • (2) न्यूटन के गति का द्वितीय नियम 
  • (3) न्यूटन के गति का तृतीय नियम 

अध्याय 8 बल तथा न्यूटन के नियम से संबंधित सभी महत्वपूर्ण में Topic पर High Quality Notes in Hindi.


बल (Force):—

किसी वस्तु पर लगने वाले धक्के या खिंचाव को बल कहते हैं।

अथवा बल एक बाह्य कारक होता है जो किसी वस्तु की विराम अवस्था या गति की अवस्था में परिवर्तन कर देता है या परिवर्तन करने का प्रयास करता है।

अथवा बल वह बाह्य कारक है जो किसी वस्तु की विरामावस्था या गतिशील अवस्था में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने का प्रयास करता है।

राशि (Quantity):—

बल एक सदिश राशि है।

मात्रक (Unit):—

SI पद्धति में बल का मात्रक न्यूटन तथा CGS पद्धति में बल का मात्रक डाइन होता है। इसका एक अन्य मात्रक किलोग्राम-भार भी होता है।

1 न्यूटन=1/9.81 किलोग्राम-भार
1 न्यूटन=1 किग्रा×1〖मी⁄से〗^2=10^5 डाइन
1 डाइन=1 ग्राम×1〖सेमी⁄से〗^2

बल के प्रभाव (Effects of Force):—

बल के निम्नलिखित प्रभाव होते हैं।

आकार में परिवर्तन :—

बल किसी वस्तु के आकार में परिवर्तन कर सकता है। जैसे हम स्पंज या रबड़ की गेंद को हाथ से दबाते हैं तो उसका आकार बदल जाता है। रबर बैंड को खींचने पर वह लंबी हो जाती है।

अवस्था में परिवर्तन :—

बल किसी वस्तु में गति उत्पन्न कर सकता है। अवस्था में परिवर्तन बल किसी विराम अवस्था की वस्तु को गति अवस्था में तथा गति अवस्था की वस्तु को विराम अवस्था में ला सकता है। उदाहरण के लिए जैसे कोई फुटबॉल या गेंद जमीन पर विरामावस्था में हो और यदि हम उस पर लात से धक्का मार दें तो वह गति करने लगती है। तथा किसी गतिशील फुटबॉल को पैर से रोक कर विराम अवस्था में भी लाया जा सकता है।

गति में परिवर्तन :—

बल किसी गतिमान वस्तु की गति को बढ़ा सकता है या कम कर सकता है। अर्थात बल किसी वस्तु की गति में परिवर्तन कर सकता है।

यदि कोई वस्तु गति कर रही है तो उसके अनुकूल दिशा में बल लगाकर उसकी गति को बढ़ाया जा सकता है तथा गतिशील वस्तु के दिशा के विपरीत बल लगाकर उसकी गति को कम किया जा सकता है।

जैसे किसी गतिमान साइकिल को यदि हम पीछे से धक्का दे तो उसकी गति बढ़ जाती है तथा यदि हम गति की दिशा के विपरीत दिशा में बाल लगे तो उसकी गति कम हो जाती है।

दिशा में परिवर्तन :—

बल किसी गतिमान वस्तु की दिशा में परिवर्तन कर सकता है। जैसे बल्लेबाज अपने बल्ले से गेंद को मारता है तो गेंद की गति की दिशा में परिवर्तन हो जाता है। जैसे फुटबॉल पर ठोकर मारकर उसकी दिशा को परिवर्तित किया जा सकता है।


निष्कर्ष :—

  1. बल किसी वस्तु में गति उत्पन्न कर सकता है।
  2. बल किसी गतिशील वस्तु को विरामावस्था में ला सकता है।
  3. बल किसी वस्तु को विरामावस्था से गतिशील अवस्था में ला सकता है।
  4. बल किसी वस्तु की गति बढ़ा या कम कर सकता है।
  5. बल किसी वस्तु के आकार या आकृति में परिवर्तन कर सकता है।

बल के प्रकार (Types of Force):—

बल दो प्रकार के होते हैं। (1) सन्तुलित बल और (2) असन्तुलित बल।

(1) सन्तुलित बल (Balanced Force):—

दो या दो से अधिक बल जो किसी वस्तु पर एक साथ कार्य करते हैं, लेकिन परिणामी बल शून्य होता है। उन्हें सन्तुलित बल कहते हैं। ये एक-दूसरे को निरस्त कर देते हैं। जिसके कारण वस्तु की स्थिति या अवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

(2) असन्तुलित बल (Unbalanced Force):—

वे बल जो किसी वस्तु पर एक साथ कार्य करते हैं और जिनके परिणामस्वरूप वस्तु की स्थिति या अवस्था में परिवर्तन होता है, असन्तुलित बल कहलाते हैं।

अथवा यदि किसी वस्तु पर लगने वाले बलों का परिणामी बल शून्य नहीं है, तो वे असंतुलित बल असन्तुलित बल कहलाते हैं।


सन्तुलित तथा असन्तुलित बल में अन्तर (Difference between balanced and unbalanced force):—

  1. ये बल किसी वस्तु पर एक साथ कार्य करते हैं तथा इनका परिणामी बल शून्य होता है।
  2. ये बल किसी वस्तु के आकार को परिवर्तित नहीं कर सकते हैं।
  3. ये बल विरामावस्था की वस्तु को गतिशील नहीं कर सकते हैं।
  4. ये बल किसी गतिशील वस्तु की चाल में परिवर्तन नहीं कर सकते हैं।
  5. ये बल किसी गतिशील वस्तु की दिशा में परिवर्तन नहीं कर सकते हैं।
  1. ये बल किसी वस्तु पर एक साथ कार्य करते हैं तथा इनका परिणामी बल शून्य नहीं होता है।
  2. ये बल किसी वस्तु के आकार को परिवर्तित कर सकते हैं।
  3. ये बल विरामावस्था की वस्तु को गतिशील कर सकते हैं।
  4. ये बल किसी गतिशील वस्तु की चाल में परिवर्तन कर सकते हैं।
  5. ये बल किसी गतिशील वस्तु की दिशा में परिवर्तन कर सकते हैं।

स्पर्शीय तथा अस्पर्शीय बल

स्पर्शीय बल :–

जब किसी वस्तु पर बल वस्तु स्पर्श करके लगाया जाता है तो वह स्पर्शीय या सम्पर्क बल कहलाता है। जैसे – पानी भरी बाल्टी उठाने में लगा बल, घर्षण बल।

अस्पर्शीय बल :–

जब किसी वस्तु पर बल बिना स्पर्श किए दूर से लगाया जाता है तो वह अस्पर्शीय या दूरस्थ बल कहलाता है। जैसे – चुंबकीय बल, विद्युत बल, गुरुत्वाकर्षण बल।


बलों का वर्गीकरण

(1) पेशीय बल :–

मांसपेशियों द्वारा किसी वस्तु पर लगने वाले बल को पेशीय बल कहते हैं।

जैसे: जिम में यंत्रों को चलाने में लगा बल, साइकिल चलाने में लगा बल, बैल, घोड़ा, गधे द्वारा विभिन्न कार्यों में लगाया गया बल, भुजाओं से किसी कार्य को करने में लगा बल।

(2) यांत्रिक बल :–

मशीन द्वारा किसी वस्तु पर लगने वाले बल को यांत्रिक बल कहते हैं। जैसे - गतिमान वायु से आटा चक्की या टरबाइन घुमाने में लगा बल।

(3) गुरुत्वाकर्षण बल :–

दो या दो से अधिक वस्तुओं या पिंडों के बीच लगने वाले बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं।

(4) घर्षण बल :–

दो सतहों के बीच सम्पर्क के कारण उत्पन्न बल को घर्षण बल कहते हैं।

(5) चुम्बकीय बल :–

दो या दो से अधिक चुम्बकों के बीच लगने वाले बल को चुम्बकीय बल कहते हैं।

(6) विद्युत बल :–

आवेशित पदार्थों के बीच लगने वाले बल को विद्युत बल कहते हैं।


जड़त्व और द्रव्यमान —

द्रव्यमान :–

द्रव्यमान किसी वस्तु में पदार्थ या द्रव्य की कुल मात्रा को उस वस्तु का द्रव्यमान कहते हैं। इसका S.I. मात्रक किलोग्राम होता है।

जड़त्व :–

जब कोई वस्तु जो अपनी गति की अवस्था में परिवर्तन का विरोध करती है। अब चाहे वह वस्तु विराम अवस्था में हो या गतिमान अवस्था में हो, वह अपनी प्रारंभिक मूल अवस्था को बनाए रखने का प्रयत्न करती है। वस्तु के इसी गुण को जड़त्व कहते हैं।


जड़त्व के प्रकार —

जड़त्व तीन प्रकार के होते हैं:

  1. विराम का जड़त्व 
  2. गति का जड़त्व 
  3. दिशा का जड़त्व

(1) विराम का जड़त्व :–

यदि कोई वस्तु विरामवस्था में है तो वह विराम में ही रहेगी जब तक की उसकी स्थिति परिवर्तन के लिए उस पर कोई बाह्य बल न लगाया जाए।

(2) गति का जड़त्व :–

यदि कोई वस्तु एक सीधी रेखा में एकसमान चाल से चल रही है तो वह तब तक चलती रहेगी जब तक की उसकी गति की अवस्था को बदला ना जाए।

(3) दिशा का जड़त्व :–

वस्तु का वह गुण जिसके कारण वह अपनी दिशा में परिवर्तन करने में असमर्थ होती है। दिशा का जड़त्व कहलाता है।

संवेग और आवेग —

(1) संवेग :–

संवेग किसी वस्तु को त्वरित करके अधिक वेग प्राप्त करने के लिए अधिक बल की आवश्यकता होती है। किसी वस्तु के द्रव्यमान एवं और वेग के गुणनफल को वस्तु का संवेग कहते हैं। इसे $P$ से प्रदर्शित करते हैं।

संवेग = द्रव्यमान × वेग
P = m v

संवेग एक सदिश राशि है। इसका मात्रक ((kg-m))⁄s होता है।

(2) आवेग :–

संवेग परिवर्तन की दर को आवेग कहते हैं। यदि अधिक परिमाण का बल अत्यंत कम समय के लिए किसी वस्तु पर कार्य करता है तो बल और समय अंतराल का गुणनफल बल का आवेग कहलाता है। इसे $I$ से प्रदर्शित करते हैं।

यदि कोई बल F अल्प समय ∆t में किसी वस्तु पर कार्यरत हो तो

आवेग (I) = बल × समय अंतराल
$I = F ∆t$
$F = I/∆t$
$F = ∆P/∆t$

आवेग एक सदिश राशि है। इसका मात्रक न्यूटन-सेकंड या किग्रा-मीटर/सेकेंड होता है।


न्यूटन के गति के नियम —

न्यूटन ने बल एवं गति के विषय में तीन नियम प्रस्तुत किए जिन्हें उन्हीं के नाम पर न्यूटन के गति विषयक नियम कहते हैं।

(1) न्यूटन की गति का प्रथम नियम : जड़त्व का नियम :–

न्यूटन ने गति के प्रथम नियम के अनुसार “यदि कोई वस्तु विरामवस्था में है तो यह विराम की अवस्था में ही बनी रहेगी और यदि कोई वस्तु गति की अवस्था में है तो गति की अवस्था में ही रहेगी जब तक कि उसे पर कोई बाह्य बल ना लगाया जाए।” इस नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं।

(2) न्यूटन के गति का द्वितीय नियम :–

न्यूटन के गति के द्वितीय नियम के अनुसार “किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस पर लगने वाले बल के अनुदिश व बल के अनुक्रमानुपाती होती है।”

यदि कोई वस्तु प्रारंभिक वेग $u$ से चलकर $∆t$ समय अंतराल में अंतिम वेग $v$ प्राप्त करती है तो —

उसके संवेग परिवर्तन की दर $∆P/∆t=(m×(v-u))/∆t ,eq(1)$
उस वस्तु पर यदि बल $F$ कार्य कर रहा हो तो परिभाषा के अनुसार
$F∝(m×(v-u))/∆t $
$F=k (m×(v-u))/∆t $
$F=k (m×∆v)/∆t $
$ F=kma ,eq(2)$
या लगाया गया बल —
$ F∝∆P/∆t $
चूंकि बल = संवेग परिवर्तन की दर।
यदि k=1 हो तो —
F=ma

(3) न्यूटन के गति का तृतीय नियम :–

इस नियम के अनुसार जब एक वस्तु किसी दूसरी वस्तु पर बल लगाती है, तो दूसरी वस्तु भी पहले वस्तु पर उतना ही बल विपरीत दिशा में लगाती है। अर्थात प्रत्येक क्रिया की एक समान व विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है। न्यूटन के गति का तृतीय नियम को क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम भी कहते हैं।


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8 Force and Newton’s Laws : Complete Notes.

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