10 कार्य, ऊर्जा एवं सामर्थ्य | हिंदी में नोट्स | Ncert science class 9th up board chapter 10 notes in Hindi

अध्याय 10 विज्ञान कक्षा 9 कार्य, ऊर्जा एवं सामर्थ्य NCERT साइंस नोट्स | Class 9th science chapter 10 notes in Hindi for UP board.

Book NCERT
Class 9th
Subject Science
Chapter 10
Chapter Name कार्य, ऊर्जा एवं सामर्थ्य
Catagory Class 9 science notes in hindi
Medium Hindi (UP Board)

अध्याय 10 विज्ञान कक्षा 9 (कार्य, ऊर्जा एवं सामर्थ्य) में हम क्या सीखेंगे?

  • कार्य
  • कार्य का मात्रक
  • बल द्वारा किया गया कार्य
  • कार्य के प्रकार
  • (1) शून्य कार्य 
  • (2) धनात्मक कार्य 
  • (3) ऋणात्मक कार्य 
  • ऊर्जा 
  • ऊर्जा के विभिन्न रूप 
  • (1) यांत्रिक ऊर्जा 
  • (2) प्रकाश ऊर्जा 
  • (3) ध्वनि ऊर्जा 
  • (4) विद्युत ऊर्जा 
  • (5) ऊष्मीय ऊर्जा 
  • (6) नाभिकीय ऊर्जा 
  • (7) सौर ऊर्जा 
  • (8) रासायनिक ऊर्जा 
  • (9) गतिज ऊर्जा 
  • स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक 
  • गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा 
  • गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक 
  • ऊर्जा संरक्षण का नियम या सिद्धांत 
  • सामर्थ्य 
  • सामर्थ्य का मात्रक 
  • सामर्थ्य तथा वेग में सम्बन्ध 
  • ऊर्जा तथा सामर्थ्य में अंतर 
  • गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा 
  • प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा 

अध्याय 11 ध्वनि से संबंधित सभी महत्वपूर्ण में Topic पर High Quality Notes in Hindi.


कार्य —

विज्ञान के अनुसार किसी वस्तु पर बल लगाकर उसे बल की दिशा के अनुदिश विस्थापन करने की क्रिया को कार्य कहते हैं। अथवा किसी वस्तु पर बल लगाकर उसे बल की दिशा में विस्थापित करने की क्रिया कार्य कहलाती है।

कार्य = बल × बल की दिशा में विस्थापन
W = F × d
W = F × s

कार्य का मात्रक —

कार्य एक अदिश राशि है। इसका मात्रक न्यूटन-मीटर होता है। इस जूल कहते हैं।

1 जूल = 1 न्यूटन-मीटर

बल द्वारा किया गया कार्य —

माना किसी वस्तु या पिंड पर F बल लगाकर आगे की ओर विस्थापित किया जाता है। तब वस्तु बिन्दु A से B तक s दूरी विस्थापित हो जाती है।

बल की दिशा में विस्थापन = S
तब किया गया कार्य W = F × S

यदि किसी वस्तु पर बल लगाने से θ कोण पर विस्थापन हो अर्थात जब बल व बल की क्रिया रेखा के बीच θ कोण हो तो किया गया कार्य

W=(Fcosθ)×S

जहां Fcosθ विस्थापन की दिशा में बल का घटक है।

विशेष स्थितियां —

जब बल व विस्थापन एक दिशा में हो तब θ=0°-

W=FScos0°=FS(1)=FS

जब बल व विस्थापन एक दिशा में हो तब θ=90°-

W=FScos90°=FS(0)=0

जब बल लगाने से कोई विस्थापन ना हो तो —

W=F×0×cosθ=0

कार्य के प्रकार —

कार्य निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं।

शून्य कार्य धनात्मक कार्य ऋणात्मक कार्य

(1) शून्य कार्य —

जब बल तथा विस्थापन लम्बवत हो तो बल द्वारा किया गया कार्य शून्य होता है। जैसे यदि प्लेटफार्म पर कोई कुली सर पर बोझ उठाकर चल रहा है तो उसके द्वारा कोई कार्य नहीं किया गया क्योंकि उसका कार्य गुरुत्व बल के लम्बवत है।

(2) धनात्मक कार्य —

यदि बल और विस्थापन के बीच बने कोण का मान 90° से कम (θ<90 p="">

(3) ऋणात्मक कार्य —

यदि बल और विस्थापन के बीच बने कोण का मान 90° से अधिक (θ>90°) हो तो किया गया कार्य ऋणात्मक होता है। जैसे यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु को खुरदरी धरातल पर खींचता है तो घर्षण बल तथा विस्थापन परस्पर विपरीत होंगे। अतः किया गया कार्य ऋणात्मक होगा।


ऊर्जा —

किसी वस्तु के कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं अर्थात किसी वस्तु में निहित ऊर्जा उसके द्वारा किए जा सकने वाले कार्य के बराबर होती है। या हम कह सकते हैं जिस वस्तु पर कार्य किया जाता है उसमें ऊर्जा की वृद्धि होती है तथा जो वस्तु कार्य करती उसमें ऊर्जा का ह्रास होता है।

ऊर्जा का मात्रक —

S.I. पद्धति में ऊर्जा का मात्रक जूल तथा CGS पद्धति में ऊर्जा का मात्रक अर्ग होता है।

1 जूल = 10 अर्ग


ऊर्जा के विभिन्न रूप —

ऊर्जा विभिन्न रूपों में पाई जाती है। ऊर्जा के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं:

यांत्रिक ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, ध्वनि ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा आदि।

(1) यांत्रिक ऊर्जा —

किसी वस्तु की गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा के संयुक्त रूप को यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं।

अर्थात यांत्रिक ऊर्जा = गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा।

(2) प्रकाश ऊर्जा —

वह ऊर्जा जिसके कारण हमें वस्तुएं दिखाई देती हैं। उसे प्रकाश ऊर्जा कहते हैं। जैसे विद्युत बल्ब, सूर्य आदि से प्राप्त ऊर्जा।

(3) ध्वनि ऊर्जा —

वह ऊर्जा जिसके कारण हमें आवाज सुनाई देती है। उसे ध्वनि ऊर्जा कहते हैं। जैसे लाउडस्पीकर से प्राप्त ऊर्जा ध्वनि ऊर्जा है।

(4) विद्युत ऊर्जा —

विद्युत धारा द्वारा संचारित ऊर्जा विद्युत ऊर्जा कहलाती है। जैसे विद्युत मोटर से प्राप्त ऊर्जा।

(5) ऊष्मीय ऊर्जा —

गर्म वस्तु द्वारा संचारित ऊर्जा जिसके कारण हमें गरमाहट का आभास होता है। ऊष्मीय ऊर्जा कहलाती है। जैसे भाप की ऊर्जा।

(6) नाभिकीय ऊर्जा —

किसी नाभिकीय प्रक्रिया से स्वतंत्र हुई ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा कहलाती है।

(7) सौर ऊर्जा —

सूर्य द्वारा विकरित ऊर्जा सौर ऊर्जा कहलाती है।

(8) रासायनिक ऊर्जा —

किसी रासायनिक प्रक्रिया में स्वतंत्र हुई ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा कहलाती है। जैसे कोयला, गैस, पैट्रोल आदि ईंधनों की ऊर्जा।

(9) गतिज ऊर्जा —

किसी गतिमान वस्तु में उसकी गति के कारण जो कार्य करने की क्षमता होती है। उसे वस्तु की गतिज ऊर्जा कहते है। जैसे बहते जल की ऊर्जा, दौड़ते खिलाड़ी की ऊर्जा, गिरते नारियल की ऊर्जा, बहती हवा की ऊर्जा आदि।


गतिज ऊर्जा के लिए व्यंजक —

माना m द्रव्यमान वाली एक वस्तु स्थिर अवस्था में है। जब वस्तु पर बल F दगाते हैं, तब उसकी गति में त्वरण उत्पन्न हो जाता है। अतः न्यूटन के गति विषयक द्वितीय नियम से —

लगाया गया बल F=ma
a=F/m ,eq(1)

यदि लगाए गए बाल के कारण s दूरी चलने में वस्तु की चाल 0 से v हो जाए तब गति के द्वितीय नियम से —

v^2=u^2+2as ,eq(2)
∵ वस्तु प्रारंभ में स्थिर अवस्था में थी। अतः u=0
v^2=0+2as
v^2=2as
समीकरण एक से a का मान रखने पर —
v^2=2(F/m)×s
mv^2=2Fs
1/2 mv^2=Fs ,eq(3)
जबकि बल की परिभाषा से —
W=Fs ,eq(4)
समी (3) और (4) से —
W=1/2 mv^2

यह कार्य ही वस्तु की गतिज ऊर्जा के बराबर होगा।

अतः वस्तु की गतिज ऊर्जा K=1/2 mv^2

इस प्रकार वस्तु की गतिज ऊर्जा वस्तु के द्रव्यमान तथा वस्तु के वेग के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है।


स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक —

किसी वस्तु में उसकी स्थिति विन्यास या विकृति व्यवस्था के कारण कार्य करने की जो क्षमता निहित (विद्यमान) रहती है। उसे वस्तु की स्थितिज ऊर्जा कहते हैं। स्थितिज ऊर्जा प्रायः तीन प्रकार की होती है।

  1. प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा
  2. विद्युत स्थितिज ऊर्जा
  3. गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा

स्थितिज ऊर्जा के उदाहरण —

घड़ी में चाबी भरने पर उससे संबंधित स्प्रिंग में प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा संचित हो जाती है। जिसके द्वारा घड़ी की सुइयां गति करती हैं।

बांध में ऊंचाई पर संग्रहित जल में गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा होती है। जिसके कारण टरबाइन को घुमाया जाता है।

ऊंचाई पर उठाए गए हथौड़े में गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा होती है। जिसके द्वारा पत्थर को तोड़ा जा सकता है या जिसके द्वारा कील को लकड़ी में गाढ़ा जा सकता है।

गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा —

किसी वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा उसे पृथ्वी तल से गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध ऊंचाई तक ले जाने में किए गए कार्य के बराबर होती है।

अर्थात किसी वस्तु में उसकी पृथ्वी तल से ऊंचाई के कारण जो कार्य करने की क्षमता निहित होती है, उसे वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।


गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक —

माना m द्रव्यमान वाली एक वस्तु पर गुरुत्वीय बल F=mg नीचे की ओर लग रहा है। माना वस्तु को h ऊंचाई तक ऊपर उठाने में गुरुत्वाकर्षण बल के विरुद्ध कुछ कार्य करना पड़ता है जो वस्तु में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।

इस प्रकार वस्तु की स्थितिज ऊर्जा वस्तु को ऊपर h ऊंचाई तक उठाने में किए गए कार्य के बराबर होती है।

अतः वस्तु की स्थितिज ऊर्जा —
U = W = बल × विस्थापन
U=F×s
U=mg×h
U=mgh

ऊर्जा संरक्षण का नियम या सिद्धांत —

ऊर्जा को न तो नष्ट किया जा सकता है और न ही उत्पन्न किया जा सकता है। इसे केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

अतः रूपांतरण से पूर्व तथा रूपांतरण के बाद संपूर्ण ऊर्जा नियत रहती है।


सामर्थ्य —

किसी वस्तु (कर्ता) द्वारा कार्य करने की दर को सामर्थ्य कहते हैं।

अथवा किसी मशीन द्वारा एक सेकेंड में किया गया कार्य उसकी शक्ति या सामर्थ्य कहलाता है।

इसे P से प्रदर्शित करते हैं। सामर्थ्य एक अदिश राशि है।

सामर्थ्य=कार्य/समय
W=P/t

सामर्थ्य का मात्रक —

सामर्थ्य का मात्रक=(कार्य का मात्रक)/(समय का मात्रक)
=जूल/सेकेंड

अतः सामर्थ्य का मात्रक जूल/सेकेंड होता है। इसे वाट भी कहते हैं।

अतः 1 जूल/सेकेंड = वाट
अतः 1 किलोवाट = 1000 वाट
अतः 1 मेगावाट = 1000000 वाट
इसका अन्य मात्रक अश्व शक्ति (HP) होता है।
अश्व शक्ति = 746 वाट (लगभग)

सामर्थ्य तथा वेग में सम्बन्ध —

P=W/t=(F×S)/t
∵ v=S/t
∴ P=Fv

ऊर्जा तथा सामर्थ्य में अंतर —


गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा —

किसी वस्तु में पृथ्वी के सापेक्ष उसकी स्थिति के कारण जो ऊर्जा होती है। वह उसकी गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहलाती है। जैसे पृथ्वी से कुछ ऊंचाई पर रखी वस्तु में गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा mgh होती है।


प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा —

किसी वस्तु के सामान्य आकार अथवा विन्यास में परिवर्तन के कारण जो ऊर्जा संचित होती है। उसे उसकी प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा कहते हैं। जैसे - किसी स्प्रिंग को खींचने पर उसमें प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा संचित हो जाती है। अतः खींचे तार की प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा —

U=1/2×F×∆x
F= तार पर लगाया गया बल
∆x=लम्बाई में वृद्धि

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10 Work, Energy and Power : Complete Notes.

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